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हिंदुकुश हिमालय⇌⇌ग्लेशियरों के पिघलने से भारत चिंतित

ग्लेशियरों के पिघलने से भारत चिंतित

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए तो हिंदुकुश हिमालय में दो-तिहाई ग्लेशियर वर्ष 2100 तक पिघल सकते हैं तथा पानी के बढ़ जाने से बड़ी नदियों में बाढ़ आ सकती है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
उत्तरी एवं दक्षिण ध्रुवों के बाद तीसरा सबसे बड़ा बर्फ का क्षेत्र है और 1970 के दशक से लगातार ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित है।वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने हेतु पूर्व-औद्योगिक स्तर के वैश्विक प्रयास विफल हो जाते हैं, तो इसके कारण वर्ष 2100 तक हिंदुकुश क्षेत्र का दो-तिहाई ग्लेशियर पिघल सकता है।ग्लेशियर पिघलने से स्थिति काफी भयावह हो सकती है क्योंकि इस क्षेत्र में हिमनदों की लगभग 8,790 झीलें हैं जिनमें से 203 हिमनद झीलों में बाढ़ आ सकती है।सामान्यतः हिंदुकुश में हर साल औसतन 76 घटनाएँ ऐसी पाई जाती हैं, जिनमें चीन में लगभग 25 तथा भारत में 18 घटनाएँ हैं।
हिमालय में वार्मिंग की घटना कैसे नदियों को अस्थिर कर सकती है? हिंदुकुश क्षेत्र एशिया का जल भंडार है। इसके ग्लेशियरों से निकलने वाला जल 10 मुख्य नदियों के माध्यम से दो अरब से अधिक लोगों को जीवन प्रदान करता है। लोग जल का उपयोग कृषि,उद्योग-धंधों एवं पीने के लिए करते हैं।
〔हिन्दूकुश उत्तरी पाकिस्तान से मध्य अफगानिस्तान तक विस्तृत एक 800 किमी लंबी वाली पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वतमाला हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। दरअसल, हिन्दूकुश पर्वतमाला पामीर पर्वतों से जाकर जुड़ते हैं और हिमालय की एक उपशाखा माने जाते हैं। पामीर का पठार, तिब्बत का पठार और भारत में मालवा का पठार धरती पर रहने लायक सबसे ऊंचे पठार माने जाते हैं। प्रारंभिक मनुष्य इसी पठार पर रहते थे।〕
हिमनद पिघलने की दर बढ़ने से इन नदियों का प्रवाह बदलकर अस्थिर हो सकता है।
हिमनद पिघलने के उच्च दर के कारण सिंधु नदी के जल-स्तर में वर्ष 2050 तक अधिक जल का प्रवाह देखा जा सकता है, उसके बाद हिमनद पिघलने की दर कम होने के कारण जल प्रवाह कम हो जाएगा।
गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ जो मुख्य रूप से मानसून से प्रभावित हैं, में भी बदलाव देखने को मिलेगा, क्योंकि मानसून से पहले जल प्रवाह में कमी हो सकती है। इससे कृषि के लिये संकट उत्पन्न हो जाएगा क्योकि कृषि कार्य में जल का बहुत बड़ा योगदान है।
क्या बढ़ता प्रदूषण स्तर संकट में योगदान दे रहा है?

इंडो-गंगेटिक समतल भाग जो कि अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र है, ने ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ाया है। ब्लैक कार्बन और धूल के जमाव ने हिंदुकुश ग्लेशियरों के पिघलने की दर को तेज़ दिया है।
मानसून पर क्या असर हो सकता है?मानसून परिसंचरण के दौरान मौसमी घटनाओं तथा गर्मियों में एशिया में वर्षा के वितरण पर हिंदुकुश श्रेणी का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।दक्षिण-पश्चिम मानसून से भारत में 70% वार्षिक वर्षा होती है। एक अनुमान के अनुसार, ग्लेशियर पिघलने से ग्रीष्म ऋतु की वर्षा में 4-12% से 4-25% की वृद्धि की संभावना है।मानसून के पैटर्न में बदलाव से, तूफानों की आवृत्ति बढ़ने सहित यह पर्वत के लिए विभिन्न खतरों को बढ़ाकर इसके महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर सकता है।क्या ज़बरन पर्यावरणीय पलायन का खतरा हो सकता है?

शोधकर्त्ताओं का कहना है कि बाढ़ जैसी चरम घटनाओं में वृद्धि के कारण लोग मज़बूरी में प्रवासन हो सकते हैं। साथ ही बड़े पैमाने पर जनसांख्यिकीय आंदोलन शुरू हो सकते हैं।
हिंदुकुश हिमालय के देशों में प्रवासन में वृद्धि की वार्षिक दर सामान्य से अधिक रही है और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या भी बढ़ने की उम्मीद है। अगले 20 वर्षों में इस क्षेत्र से शहरी क्षेत्रों में पलायन दर तीव्र हो सकती है

 अंटार्कटिका ग्लेशियर में छिद्र 

 

अंटार्कटिक ग्लेशियर में बड़ा छिद्र

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