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चलचित्र अधिनियम, 1952 में संशोधन को मंज़ूरी

                           शासन व्यवस्था
चलचित्र अधिनियम, 1952 में संशोधन को मंज़ूरी


प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चलचित्र अधिनियम, 1952 (Cinematograph Act, 1952) में संशोधन के लिये चलचित्र संशोधन विधेयक, 2019 (Cinematograph Amendment Bill, 2019) को प्रस्‍तुत करने की मंज़ूरी दी है। इस संशोधन का प्रस्ताव सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा किया गया था। प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्‍य फिल्‍म की साहित्यिक चोरी/पायरेसी (Piracy) को रोकना है और इसमें गैर-अधिकृत कैमकॉर्डिंग (Camcording) और फिल्‍मों की कॉपी (Duplication of films) बनाने के खिलाफ दंडात्‍मक प्रावधानों को शामिल करना है।
प्रस्तावित संशोधन

➤गैर-अधिकृत रिकॉर्डिंग को रोकने हेतु नई धारा 6AA
➤चलचित्र अधिनियम, 1952 की धारा 6A के बाद एक और धारा 6AA जोड़ी जाएगी।
इस धारा के अनुसार, ‘अन्‍य कोई लागू कानून के बावजूद किसी व्‍यक्ति को लेखक की लिखित अनुमति के बिना किसी ऑडियो विजुअल रिकॉर्ड उपकरण का उपयोग करके किसी फिल्‍म या उसके किसी हिस्‍से को प्रसारित करने या प्रसारित करने का प्रयास करने या प्रसारित करने में सहायता पहुँचाने की अनुमति नहीं होगी।
“यहाँ लेखक का अर्थ चलचित्र अधिनियम, 1957  की धारा 2 की उपधारा-D में दी गई व्‍याख्‍या के समान है।“
धारा-7 में संशोधन
धारा-7 में संशोधन का उद्देश्‍य धारा-6AA के प्रावधानों के उल्‍लंघन के मामले में दंडात्‍मक प्रावधानों को शामिल करना है। मुख्‍य अधिनियम की धारा-7 में उपधारा-1 के बाद उपधारा-1A जोड़ी जाएगी। इसके अनुसार, “यदि कोई व्‍यक्ति धारा-6AA के प्रावधानों का उल्‍लंघन करता है, तो उसे 3 साल तक का कारावास या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा दी जा सकती है।”
संशोधन के लाभ
प्रस्‍तावित संशोधनों से इस उद्योग के राजस्‍व में वृद्धि होगी, रोज़गार का सृजन होगा, भारत के राष्‍ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (India’s National IP policy) के प्रमुख उद्देश्‍यों की पूर्ति होगी और पायरेसी तथा ऑनलाइन विषय-वस्‍तु के कॉपीराइट उल्‍लंघन के मामले में राहत मिलेगी।
राष्‍ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मई 2016 में राष्‍ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को मंज़ूरी दी थी। इस नीति के तहत सात लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं जो इस प्रकार हैं-बौद्धिक संपदा अधिकार जागरूकता: पहुँच और प्रोत्‍साहन-  समाज के सभी वर्गो में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्‍कृतिक लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना। बौद्धिक संपदा अधिकारों का सृजन- बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा। वैधानिक एवं विधायी ढाँचा- मज़बूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना, ताकि अधिकृत व्‍यक्तियों तथा बृहद् लोकहित के बीच संतुलन कायम हो सके। प्रशासन एवं प्रबंधन- सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मज़बूत बनाना। बौद्धिक संपदा अधिकारों व्‍यवसायीकरण- व्‍यवसायीकरण के ज़रिये बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्‍य निर्धारण। प्रवर्तन एवं न्‍यायाधिकरण- बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्‍लंघन को रोकने के लिये प्रवर्तन एवं न्‍यायिक प्रणालियों को मज़बूत बनाना। मानव संसाधन विकास- मानव संसाधनों, संस्‍थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मज़बूत बनाना तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत कौशल निर्माण का प्रयास करना।
संशोधन की आवश्यकता
समय के साथ एक माध्‍यम के रूप में सिनेमा, इसकी प्रौद्योगिकी, उपकरण और यहाँ तक कि दर्शकों में भी महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। पूरे देश में टीवी चैनलों और केबल नेटवर्क के विस्‍तार से मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में कई परिवर्तन हुए हैं। लेकिन नई डिजिटल तकनीक के आगमन विशेष रूप से इंटरनेट पर पायरेटेड फिल्‍मों के प्रदर्शन से पायरेसी का खतरा बढ़ा है। इससे फिल्‍म उद्योग और सरकार को राजस्‍व की अत्‍यधिक हानि होती है। फिल्‍म उद्योग की लंबे समय से मांग रही है कि सरकार कैमकोर्डिंग और पायरेसी रोकने के लिये कानून में संशोधन पर विचार करे। भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum of Indian Cinema) के उद्घाटन अवसर पर यह घोषणा की गई थी कि कैमकोर्डिंग और पायरेसी निषेध की व्‍यवस्‍था की जाएगी। इससे पहले चलचित्र अधिनियम और नियमों की समीक्षा करने और सिफारिशें देने के लिये वर्ष 2013 में मुदगल समिति तथा वर्ष 2016 में श्याम बेनेगल समिति का गठन भी किया गया था।
मुदगल समिति
इस समिति का गठन 4 फरवरी, 2013 को चलचित्र अधिनियम, 1952 के तहत प्रमाणीकरण मुद्दों पर विचार करने हेतु पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुदगल की अध्यक्षता में किया गया था। मुदगल समिति ने अपनी रिपोर्ट में अश्लीलता और सांप्रदायिक वैमनस्य, महिलाओं के चित्रण और सलाहकार मंडल जैसे मुद्दों के संबंध में दिशा-निर्देश, वर्गीकरण, फिल्मों की पायरेसी, अपीलीय पंचाट की न्याय सीमा तथा चलचित्र अधिनियम, 1952 के प्रावधानों की समीक्षा पर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं।
श्याम बेनेगल समिति
1 जनवरी, 2016 को फिल्मों के प्रमाणन हेतु सर्वांगीण रूपरेखा का निर्माण करने के लिये श्याम बेनेगल की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया था। इस समिति को फिल्म प्रमाणन के लिये विश्व भर में सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए और कलात्मक रचनात्मकता को पर्याप्त स्थान प्रदान करते हुए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के लाभ के लिये प्रक्रियाओं और दिशा-निर्देशों के साथ-साथ जन अनुकूल और निष्पक्ष प्रभावी ढाँचे के निर्माण की सिफारिशें प्रस्तुत करनी थीं।

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