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Showing posts from February 10, 2019

सिंधु जल संधि

सिंधु जल संधि को दो देशों के बीच जल विवाद पर एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण बताया जाता है.  56 साल पहले भारत और पाकिस्तान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. दोनो देशों के बीच दो युद्धों और एक सीमित युद्ध कारगिल और हज़ारों दिक्क़तों के बावजूद ये संधि कायम है. विरोध के स्वर उठते रहे लेकिन संधि पर असर नहीं पड़ा.  उड़ी चरमपंथी हमले में 18 भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद एक बार फिर कयास लग रहे हैं कि क्या भारत, सिंधु जल समझौता रद्द कर सकता है? , "आखिरकार किसी भी समझौते के लिए दोनो पक्षों में सद्भाव और सहयोग की ज़रूरत होती है." सिंधु बेसिन ट्रीटी पर 1993 से 2011 तक "इस समझौते के नियमों के मुताबिक कोई भी एकतरफ़ा तौर पर इस संधि को रद्द नहीं कर सकता है या बदल सकता है. दोनो देश मिलकर इस संधि में बदलाव कर सकते हैं या एक नया समझौता बना सकते हैं." उधर पानी पर वैश्विक झगड़ों पर किताब लिख चुके ब्रह्म चेल्लानी समाचार पत्र 'हिंदू' में लिखते हैं, "भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)

                                              अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) की स्थापना जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर, यूएसए में आयोजित 44 देशों के सम्मेलन में की गयी थी. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और आईबीआरडी की स्थापना एक ही समय और जगह पर हुई थी; इस कारण इन दोनों को ब्रेटन वुड्स ट्विन्स के रूप में जाना जाता है. IMF की स्थापना, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक ढांचा बनाने के लिए की गई थी. यह संगठन अपने कुछ उद्येश्यों को प्राप्त करने में कुछ सफल जरूर रहा है लेकिन इस संस्था पर अमीर देशों का कब्ज़ा ज्यादा है क्योंकि इसके कोटे में इन अमीर देशों की भागीदारी ज्यादा है. शायद यही कारण है कि IMF के प्रबंध निदेशक के पद पर अब तक केवल यूरोपीय लोगों की नियुक्ति की गयी है.  संस्थापक सदस्य: 44 देश. भारत IMF का संस्थापक सदस्य देश है.  कुल सदस्य: 189 देश. आम तौर पर IMF का हर सदस्य देश विश्व बैंक का सदस्य बन जाता है. इसी तरह IMF छोड़ने वाला देश स्वचालित रूप से(automatically) विश्व बैंक से

पाकिस्तान से छिना मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज का द्रजा। जानिए आखिर है क्या

क्या है सबसे ज्यादा फेवरेट नेशन क्लॉज मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)   का दर्जा कब दिया गया? मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)  क्या है? दरअसल एमएफएन (एमएफएन)  का मतलब है मोस्ट फेवर्ड नेशन, यानी सर्वाधिक तरजीही देश. विश्‍व व्‍यापार संगठन और इंटरनेशनल ट्रेड नियमों के आधार पर व्यापार में सर्वाधिक तरजीह वाला देश (एमएफएन) का दर्जा दिया जाता है. एमएफएन का दर्जा मिल जाने पर दर्जा प्राप्त देश को इस बात का आश्वासन रहता है कि उसे कारोबार में नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. भारत 01 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सदस्य बना था. डब्ल्यूटीओ बनने के साल भर बाद भारत ने पाकिस्तान को वर्ष 1996 में मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)  का दर्जा दिया था लेकिन पाकिस्तान की ओर से भारत को ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया गया था . मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)   का दर्जा लेने की प्रक्रिया: बता दें कि विश्व व्यापार संगठन के आर्टिकल 21बी के तहत कोई भी देश उस सूरत में किसी देश से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले सकता है जब दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर विवाद उठ गया हो. हालांकि इसके लिए तमाम शर्तें पूर

अमीर खुसरो कौन थे व उनका भारत के इतिहास मै क्या योगदान था?

 अमीर खुसरो सूफीयाना कवि थे और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के मुरीद थे।इनका जन्म ईस्वी सन् 1253 में हुआ था। खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन मुहम्मद इनके जन्म से पूर्व तुर्की में लाचीन कबीले के सरदार थे। कबीलों के आपसी संघर्ष से घबरा कर वे हिन्दुस्तान भाग आए थे और उत्तरप्रदेश के ऐटा जिले के पटियाली नामक गांव में जा बसे। इत्तफाकन इनका सम्पर्क सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश के दरबारी से हुआ, अपने साहस और सूझ-बूझ से ये सरदार बन गए और वहीं एक नवाब की बेटी से शादी हो गई और तीन बेटे पैदा हुए उनमें बीच वाले अबुल हसन ही अमीर खुसरो थे। इनके पिता खुद तो खास पढे न थे पर उन्होंने इनमें ऐसा कुछ देखा कि इनके पढने का उम्दा इंतजाम किया। एक दिन वे इन्हें ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के पास ले गए जो कि उन दिनों के जाने माने सूफी संत थे। एक बार की बात है। तब खुसरो गयासुद्दीन तुगलक के दिल्ली दरबार में दरबारी थे। तुगलक खुसरो को तो चाहता था मगर हजरत निजामुद्दीन के नाम तक से चिढता था। खुसरो को तुगलक की यही बात नागवार गुजरती थी।मगर वह क्या कर सकता था, बादशाह का मिजाज। बादशाह एक बार कहीं बाहर से दिल्ली लौट रहा था तभी चिढक़

गोवा भारत का हिस्सा कैसे बना?

वर्ष 1961 से पूर्व गोवा भारत का हिस्सा नहीं था। आइए देखते हैं कि गोवा कब भारत का भाग बना।जैसा की हम जानते हैं, भारत 1947 में आज़ाद हुआ था और आज का “एक” भारत पंडित नेहरु और सरदार पटेल के अथक प्रयासों के कारण ही एक हुआ था जो आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरा हुआ था। वो सरदार पटेल ही थे जिनकी भू-राजनीतिक सूझ-बुझ के कारण छोटी-बड़ी 562 रियासतों को भारतीय संघ में समाहित कर दिया था। यही कारण है सरदार पटेल को “भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष ” भी कहा जाता है। लेकिन कुछ ऐसे भी प्रांत थे जहाँ उपनिवेशी जड़े इस कदर गहरी थी की आजादी के बहुत सालो तक वो प्रांत भारत का हिस्सा नहीं थे उसमे से एक था गोवा, जहाँ पुर्तगालियों का लगभग 450 सालों से शासन था। गोवा भारत का हिस्सा कैसे बना? जब 1947 में भारत को आज़ादी मिल गयी थी तब भी यहाँ पर पुर्तगालियों का ही राज्य स्थापित था। भारत सरकार के बार–बार अनुरोध करने पर भी पुर्तगाली यहाँ से जाने को तैयार नहीं थे। इस साम्राज्य के खिलाफ 1955 में सत्याग्रह भी हुआ पर पुर्तगालियों ने क्रूरता दिखाते हुए 22 लोगो को अपनी बंदूक का निशाना बना दिया था। उस समय तात्कालिक प्रधा

कनिष्क

कनिष्क (शासनकाल- 127 ई. से 140-51 ई.) कुषाण वंश का प्रमुख सम्राट् था। कनिष्क भारतीय इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। यूची क़बीले ने भारत में कुषाण वंश की स्थापना की और भारत को कनिष्क जैसा महान् शासक दिया। कनिष्क को कुषाण वंश का तीसरा शासक माना जाता था किन्तु राबाटक शिलालेख के बाद यह चौथा शासक साबित होता है। संदेह नहीं कि कनिष्क कुषाण वंश का महानतम शासक था। कनिष्क के राज्यारोहण के समय कुषाण साम्राज्य में अफ़ग़ानिस्तान, सिंध का भाग, बैक्ट्रिया एवं पार्थिया के प्रदेश सम्मिलित थे। कनिष्क ने भारत में अपना राज्य मगध तक विस्तृत कर दिया। वहाँ से वह प्रसिद्ध विद्वान् अश्वघोष को अपनी राजधानी पुरुषपुर ले गया। तिब्बत और चीन के कुछ लेखकों ने लिखा है कि उसका साकेत और पाटलिपुत्र के राजाओं से युद्ध हुआ करता था। कश्मीर को अपने राज्य में मिलाकर उसने वहाँ एक नगर बसाया जिसे ‘कनिष्कपुर’ कहते हैं। कनिष्क ने उज्जैन के क्षत्रप को हराया था और मालवा का प्रान्त प्राप्त किया था। कनिष्क का सबसे प्रसिद्ध युद्ध चीन के शासक के साथ हुआ था, पहली बार

शिक्षा में प्रणालीगत परिवर्तन लाने के लिए आशय पत्र पर हसताक्षर

शिक्षा में प्रणालीगत परिवर्तन लाने के लिए आशय पत्र पर हसताक्षर हाल ही में नीति आयोग और माइकल एंड सुसान डेल फाउंडेशन (माइकल एंड सुसान डेल फाउंडेशन-एमएसडीएफ) ने एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए। उद्देश्य नीति आयोग और माइकल एंड सुसान डेल फाउंडेशन द्वारा इस आशय पत्र पर हस्ताक्षर करने का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राज्य सरकारों के सामूहिक अनुभव के आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में प्रणालीगत बदलाव लाना है। महत्वाकांक्षी बिंदु इस नवीनतम भागीदारी के तहत नीति आयोग और सुसान डेल फाउंडेशन विभिन्द राज्य सरकारों द्वारा किए गए उन सुधारों का मूल्यांकन (प्रलेखन) करेंगे, जिन्हें शिक्षा में प्रणालीगत सुधारों की शुरूआत हुई है और पिछले वर्षों के दौरान इन सुधारों से शिक्षा के परिणामों में सुधार आना शुरू हुआ। है। समझौते के तहत राज्य के प्रमुखों, सलाहकारों, अनुसंधान एजेंसियों और शिक्षकों का एक संविदा समूह राजों से शिक्षा पर आधारित परिवर्तन के सिद्धांत को विकसित करने में मिलकर कार्य करेगा और शिक्षा में प्रणालीगत सुधार के प्रभाव के मौल्यांकन का अधिनयन तीसरे पक्ष द्वारा बना देगा। नीति आयोग के अन्य

China and India making the world green

conservation Environment pollution and decline A recent study by NASA figures based on the American Space Agency has shown that India and China are leading global efforts to make the earth green. Significantly, the result of this study is in contradiction to the world-made assumption about India and China. key points As a result of this study, it has also become evident that the world is more green than it was 20 years ago. In this study, the photographs taken by satellite during the year 2000 to 2017 were analyzed. In this, greenery patterns in India and China are astonishing. Together, both countries seem to be more covered than agricultural land in the world. This result of the study is in contradiction to the general belief that it is said that green areas are declining due to excessive exploitation in countries with large population. In the eighth and ninth decade of the last century, the situation of green areas in India and China was not good but since 1990 people ha

नाथ सम्प्रदाय क्या है?

हिन्दुओं के प्रमुख पाठत: चार संप्रदाय है: - वैदिक, वैष्णव, शैव और स्मार्त। शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं। उन्हीं में दसनामी और 12 गोरखवादी संप्रदाय शामिल हैं। जिस तरह शैव के कई उप संप्रदाय है उसी तरह वैष्णव और अन्य के भी। आओ जानते हैं कि किस तरह नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति हुई।'नाथ' शब्द का प्रचलन हिंदू, बौद्ध और जैन संतों के बीच विद्यमान है। 'नाथ' शब्द का अर्थ होता है स्वामी। वैष्णवों में स्वामी और शैवों में 'नाथ' शब्द का महत्व है। आपने अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि कई तीर्थस्थलों के नाम सुने होंगे। आदि का अर्थ प्रारंभ। भगवान शंकर को 'भोलेनाथ' और 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस आदिश शब्द से ही आदेश शब्द बना है। 'नाथ' साधु जब एक-दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश हैं भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। भगवान शंकर के ब

रेगिस्तान कैसे बनते हैं?

 रेगिस्तान व्यापक जलवायु परिवर्तन के कारण बनते हैं। रेगिस्तानीकरण कोई नई परिघटना नहीं है अपितु इसका इतिहास तो बहुत पुराना है। संसार के विशाल रेगिस्तान अनेक प्राकृतिक क्रियाओं से गुजर कर, दीर्घ अंतराल के पश्चात ही निर्मित हुए हैं। रेगिस्तान स्थिर नहीं होते, कभी फैलते हैं तो कभी सिकुड़ते हैं और निश्चित रूप से इन पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है। रेगिस्तानीकरण एक सीधी लाइन में अथवा दिशा में अपना दायरा नहीं फैलाता तथा इसको मापने की कोई निश्चित विधि भी नहीं है। धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास कोई साधारण व अनायास होने वाली प्रक्रिया नहीं है अपितु एक जटिल प्रक्रिया है। भूमि ह्रास का कोई एक निश्चित कारण भी नहीं है। किसी भी धरती का ह्रास करने में अनेक कारण सहायक हो सकते हैं। विभिन्न स्थानों की भूमि की उवर्रकता के ह्रास की गति भी एक समान नहीं होती है और अनेक स्थानों पर यह जलवायु पर निर्भर करती है। रेगिस्तानीकरण किसी भी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित कर अति शुष्क बना सकता है और वहां की स्थानीय जलवायु में परिवर्तन कर सकने में सहायक हो सकता है। रेगिस्तान का विस्तार एक अनिश्चित प्रक्रिया है तथा

भारत-श्रीलंका संबंध

भारत-श्रीलंका संबंध                                                                                                      इतिहास और पृष्ठभूमि भारत श्रीलंका का एकमात्र और सबसे करीबी पड़ोसी है जोकि पाक जलडमरूमध्य द्वारा अलग होता है दोनों देश बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई समागम की विरासत को बांटते हुए 2500 से अधिक वर्षों के एक रिश्ते का हिस्सा रहे है। दोनों देश ने आम तौर पर एक मिलनसार संबंध साझा किया है लेकिन विवादास्पद श्रीलंकाई नागरिक युद्ध और युद्ध के दौरान भारतीय हस्तक्षेप की विफलता से प्रभावित हुए। दोनों ही देशो का दक्षिण एशिया में एक रणनीतिक स्थान पर कब्जा है तथा हिंद महासागर में एक आम सुरक्षा छतरी का निर्माण करने की मांग की है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से दोनों देशों एकदूसरे के काफी करीब है, 70% श्रीलंकाई वर्तमान में भी थेरवाद बौद्ध धर्म का लगातार पालन करते आ रहे है। हाल के वर्षों में श्रीलंका चीन के करीब हो गया है, विशेष रूप से नौसेना समझौतों के संदर्भ में। भारत ने संबंधों में सुधार के लिए एक परमाणु ऊर्जा समझौते पर हस्ताक्षर किया है। श्रीलंका के राजा देवनम्पि

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण-

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण - स्थायी सेना समाप्त करना -  फिरोज शाह तुगलक ने स्थायी सेना समाप्त करके सामन्ती सेना का गठन किया । सैनिकों के वेतन समाप्त कर के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अनुदान दिया गया । अमीरों के भूमि वंशानुगत कर दिए गए थे उसी तरह सैनिकों की भूमि भी वंशानुगत कर दिया गया । सैनिक सुखी पूर्वक स्वच्छाचारिता पूर्ण कार्य करने लगा । उन्हें भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता था इसलिए उन्हें किसी का डर भी नहीं था । नियमित व निश्चित भूमिकर प्राप्त होने से सैनिक आलसी विलास प्रिय होने लगा । उसका अधिकांश समय लगान वसुली में लगता था। राज्य सुरक्षा के लिए समय नहीं बच पाता था । इस तरह शिथिल सैनिकों का लाभ विदेशियों ने उठाया गुलाम प्रिय शासक  -  दिल्ली सल्तनत गुलामों का शौकिन था । गुलामों को अपनी शक्ति मानकर उनके प्रशिक्षण के पृथक विभाग की स्थापना किया । दासों को पर्याप्त वेतन और सुविधाएं देने के कारण राजकोष पर भारी आर्थिक दबाव पड़ा । आगे चलकर दासों ने संगठित होकर तुगलक के साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह करने लगे । जजिया व अन्य कर लगाना -  सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने ब्राम्हणों व गैर मुसल

Oscar Award

Oscar Award is the world's most popular, popular and prestigious award in the world of film industry. They started in 1929. These Oscar names were later known as the first Academy Awards. Academy of Motion Picture Arts and Science: These awards are given by the organization that does not work for a benefit named Academy of Motion Picture Arts and Science (Empass). Which was established in 1927 by the 36 most prominent people of the motion picture industry at that time. Beginning in 1927, MGM studio chief Louis B. Mayer, Mayor and three of his guests, actor Conrad Nagel, director Fred Niblo and producer Feid Beatson planned to create an organization that would benefit the whole film industry. They planned to make this proposal in front of the people of all the creative genres of the film industry. On January 11, 1927, at the Ambassador Hotel in Los Angeles, 36 people met at dinner and talked about the proposal to establish the International Academy of Motion Pictures Arts and S

अंतर्राष्ट्रीय संबंध ईरानी इस्लामिक क्रांति के चार दशक

1 से 11 फरवरी तक ईरान में इस्लामी क्रांति की 40वीं सालगिरह मनाई गई। फरवरी 1979 में धार्मिक नेता अयातुल्लाह रूहोल्लाह खोमैनी (Ayatollah Ruhollah Khomeini) देश वापस लौटे थे और उन्होंने उस क्रांति का नेतृत्व किया जिसने तत्कालीन शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। 11 फरवरी 1979 को ही ईरान से अमेरिकी समर्थक पहलवी राजवंश के शासन की समाप्ति हुई और इस्लामी क्रांति के जनक अयातुल्ला रुहोल्लाह खोमैनी को ईरान का सर्वोच्च नेता चुना गया। प्राचीन काल का ईरान आज का ईरान प्राचीन काल के ईरान से बिल्कुल अलग है। ईरान को तब पर्शिया या फारस के नाम से जाना जाता था। उससे पहले यह आर्याना कहलाता था। तब फारस देश में आर्यों की एक शाखा का निवास था। माना जाता है कि वैदिक काल में फारस से लेकर वर्तमान भारत के काफी बड़े हिस्से तक सारी भूमि आर्यभूमि कहलाती थी, जो अनेक प्रदेशों में विभक्त थी। जिस प्रकार भारतवर्ष में पंजाब के आसपास के क्षेत्र को आर्यावर्त कहा जाता था, उसी प्रकार फारस में भी आधुनिक अफगानिस्तान से लगा हुआ पूर्वी प्रदेश अरियान व एर्यान कहलाता था, जिससे बाद में ईरान नाम मिला। इस्ल