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दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण-

  • दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण-
  1. स्थायी सेना समाप्त करना - फिरोज शाह तुगलक ने स्थायी सेना समाप्त करके सामन्ती सेना का गठन किया । सैनिकों के वेतन समाप्त कर के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अनुदान दिया गया । अमीरों के भूमि वंशानुगत कर दिए गए थे उसी तरह सैनिकों की भूमि भी वंशानुगत कर दिया गया । सैनिक सुखी पूर्वक स्वच्छाचारिता पूर्ण कार्य करने लगा । उन्हें भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता था इसलिए उन्हें किसी का डर भी नहीं था । नियमित व निश्चित भूमिकर प्राप्त होने से सैनिक आलसी विलास प्रिय होने लगा । उसका अधिकांश समय लगान वसुली में लगता था। राज्य सुरक्षा के लिए समय नहीं बच पाता था । इस तरह शिथिल सैनिकों का लाभ विदेशियों ने उठाया
  2. गुलाम प्रिय शासक - दिल्ली सल्तनत गुलामों का शौकिन था । गुलामों को अपनी शक्ति मानकर उनके प्रशिक्षण के पृथक विभाग की स्थापना किया । दासों को पर्याप्त वेतन और सुविधाएं देने के कारण राजकोष पर भारी आर्थिक दबाव पड़ा । आगे चलकर दासों ने संगठित होकर तुगलक के साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह करने लगे ।
  3. जजिया व अन्य कर लगाना - सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने ब्राम्हणों व गैर मुसलमानों पर धार्मिक कर लगा दिया जिससे, हिन्दू व गैर मुसलमान सुल्तान के विरूद्ध हो गये ।
  4. न्याय व्सवस्था में लचीलापन - सुल्तान तुगलक के न्याय शरियत के आधार पर न करके सभी अमानवीय दण्डों को शरियत के विरूद्ध मानकर बन्द कर दिया । उसने मुसलमानों के लिए मृत्यु दण्ड समाप्त कर दिया । मृत्यु दण्ड विद्रोहीयों को ही दिया जाने लगा । न्याय की लचीलापन के कारण प्रजा स्वतंत्रता व स्वेच्छाचारिता होने लगे ।
  5. आर्थिक संकटसुल्तान ने युद्ध और विजय की अपेक्षा शांति पूर्वक प्रजा की सुख- सुविधा की और ध्यान दिया, कृषि के विकास के लिए नहरें, तालाब, कुओं का निर्माण करवाया । किसानों को पूर्व से लगान पता था कि उन्हें कितना कर देना पड़ेगा । भूमि लगान वसूली में कोर्इ सख्ती नहीं बरती, उलेमाओं के परामर्श से लगान उपज का 1/10 भाग निर्धारित किया गया ।
  6. व्यापार को प्रोत्साहन- सुल्तान ने व्यापार व्यावसाय को प्रोत्साहन दिया निश्चित बाजार निर्धारित किया । बाजार नियंत्रित था, कोर्इ व्यापारी जनता का अनावश्यक शोषण नहीं कर सकते थे । व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया था, व्यापारी दुरस्थ क्षेत्रों में भी जाकर निश्चित व्यापार करते थे । व्यापार की सुविधा के लिए कम दाम के मुद्रा का प्रचलन किया व सिक्के चलाए ।
  7. जन सहायता के कार्य - सुल्तान ने विभिन्न प्रयोग कार्य के कारण आम जनता को जो आर्थिक हानि हुर्इ जिसका क्षतिपूर्ति राजकोष से मुआवजा देकर किया । जिससे राजकोष पर आर्थिक भार पड़ा । बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्रदान किया गया । व्यवसाय का विकास किया । बेरोजगारों की सहायता के लिए रोजगार दफ्तर खोले ।
  8. दीवान-ए-खैरात - लोगों को नुकसान व आर्थिक संकट के समय आर्थिक सहायता प्रदान किए दीवान ए खैरात विभाग की स्थापना किया, जो मुसलमान विधवाओं और अनाथ बच्चों की आर्थिक सहायता करते थे । निर्धन मुसलमान लड़कियों के निकाह में आर्थिक सहयोग देता था। रोगियों के लिए अस्पताल की व्यवस्था किया था ।
  9. प्रशासनिक दुर्बलता - फिरोज तुगलक के उदार हृदय ने सभी के दिलों को जीत लिया था किन्तु कुछेक राज द्रोहीयों व शत्रुओं ने इसका नाजायज लाभ उठाना चाहा और स्थानिय राजाओं को भड़काना प्रारंभ किया । जिसके कारण प्रान्तीय राज्य जैसे- बंगाल, गुजरात, जौनपुर, मालवा स्वतंत्र होने लगे व दिल्ली सल्तनत से नाता तोड़ने लगा ।
  10. स्थापत्य कलासुल्तान ने अनेक मदरसों व मकबरे की स्थापना किया गया । वास्तुकला प्रेमी यहां विद्वानों शिक्षकों की नियुक्ति किया, मस्जिद ए जामा हौज ए अलहि की मरम्मत करवाये । कुतुबमीनार में आवश्यक सुधार कार्य करवाये ।
  11. शिक्षा- शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए विद्वानों का आदर करता था । इसके शासन काल में बरनी ने दो महत्वपूर्ण ग्रन्थों (1) फतवा ए जहांदारी (2) तारीखें फिरोजशाही का लेखन किया। उर्दू व अन्य सहित्यों का फारसी में अनुवाद भी करवाये ।
सुल्तान स्वयं इतिहास, धर्मशास्त्र, कानून जैसे साहित्यों पर रूचि रखते थे । प्रत्येक शुक्रवार को अपने दरबार में विद्वानों, कलाकारों, संगीतज्ञों का दरबार लगता था । हिन्दुओं के अतिरिक्त मुसलमानों को अधिक प्रिय समझते थे । इसलिए मुसलमानों की शिक्षा पर अधिक जोर दिया । सुल्तान ने अपनी मुस्लिम प्रजा की शिक्षा के लिए शालाएं और उच्च विद्यालय स्थापित किये । मस्जिदों में प्राथमिक शालाएं बनवायी प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा मकतब एवं मदरसों की स्थापना की। इल्तुमिश ने भी दिल्ली में उच्च विद्यालय की स्थापना की ।
राज्य व प्रदेश सभी राजधानियों एवं शहरों में अनेक विद्यालयों की स्थापना की गर्इ । जौनपुर शिक्षा के केन्द्र थे । बीदर में महाविद्यालय और पुस्तकालय की स्थापना की । मंगोल आक्रमणों से डर कर शिक्षा शास्त्रियों एवं विद्वानों ने दिल्ली में शरण लेकर प्राण बचाये । दिल्ली में रहने के कारण साहित्यों का अधिक विकास हुआ।

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