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इंडियाज वर्ल्ड : हिंद-प्रशांत रणनीति भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

हिंद महासागर की सुरक्षा में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को स्वीकार करते हुए ट्रंप प्रशासन ने द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने के अपने प्रयास के तहत भारत के साथ संभावित मिसाइल रक्षा सहयोग पर बातचीत की। नई दिल्ली पेंटागन की रणनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिये तैयार है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिये तत्पर है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जारी 81-पेज की ‘मिसाइल डिफेंस रिव्यू’ रिपोर्ट भारत के लिये इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण है कि भारत ने रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिये 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऑर्डर दिया, जिससे वाशिंगटन नाराज हो गया। रिपोर्ट में पेंटागन ने दावा किया है कि आक्रामक मिसाइल क्षमताओं से उत्पन्न खतरे अब दुनिया भर के कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण एशिया के कई देशों ने बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों की एक उन्नत रेंज विकसित की है या विकसित कर रहे हैं। इस संदर्भ में अमेरिका ने भारत के साथ संभावित मिसाइल रक्षा सहयोग पर चर्चा की है।
रिपोर्ट के अनुसार, यह एक प्रमुख रक्षा भागीदार और हिंद-प्रशांत रणनीति के प्रमुख तत्त्व के रूप में भारत की स्थिति का एक प्राकृतिक परिणाम है। रिपोर्ट में रूस और चीन द्वारा अमेरिका के लिये बड़े खतरे के रूप में मिसाइल विकास परियोजनाओं की पहचान की गई है। यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि अमेरिका ने पहले भारत को अपनी मिसाइल रक्षा प्रणाली की पेशकश करने में अनिच्छा दिखाई थी।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र?
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, हिंद Iindo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है। इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है, जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है। ट्रंप द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘एशिया-प्रशांत रणनीति’ Indo-Pacific Strategy) का अर्थ है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य प्रमुख एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान और ऑस्ट्रेलिया, ‘शीत युद्ध’ के बढ़ते प्रभाव के नए ढाँचे में चीन को रोकने में शामिल होंगे।
यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण क्यों है?
वर्तमान में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 प्रतिशत, विश्व की कुल आबादी का 65 प्रतिशत, विश्व की कुल GDP का 62 प्रतिशत तथा विश्व के माल व्यापार का 46 प्रतिशत योगदान देता है।
जाहिर है, इसमें उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाने वाले क्षेत्रीय व्यापार और निवेश के अवसर पैदा करने हेतु सभी घटक मौजूद हैं।
इस क्षेत्र में भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा भी ज़ोर पकड़ रही है, जिसमें दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएँ, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा में शामिल हैं।
इस तरह देखें तो वैश्विक सुरक्षा और नई विश्व व्यवस्था की कुंजी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है।
इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। यहाँ आसियान के देश तथा चीन के मध्य लगातार विवाद चलता है।
दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है- मलक्का का जलडमरूमध्य। यह रणनीतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है। यह इंडोनेशिया के पास स्थित है।
गुआन आइलैंड, मार्शल आइलैंड रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त लाल सागर, गल्फ ऑफ़ अदेन, पर्शियन गल्फ ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ से भारत का तेल व्यापार होता है। यहाँ पर हाइड्रोकार्बन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सेशेल्स और मालदीव भी इसी क्षेत्र में आते हैं।
इसप्रकार यह क्षेत्र रणनीतिक तथा व्यापारिक दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण है।
                             हिंद-प्रशांत रणनीति (Indo-Pacific Strategy)

हिंद-प्रशांत रणनीति विगत कई महीनों से चर्चा में है। अमेरिका सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वृहद् भारत-अमेरिकी सहयोग की हिमायत कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विधिसम्मत, मुक्त व्यापार, आवाजाही की आज़ादी और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये उपयुक्त ढाँचा बनाना, इस रणनीति के मुख्य भाग हैं। इस रणनीति के मुख्य भागीदार हैं-

1. अमेरिका
अब अमेरिका अपने दीर्घकालिक हितों के लिये एशिया की अहमियत पर फिर से ध्यान केंद्रित कर रहा है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘मुक्त एवं स्वतंत्र’ क्षेत्र बनाने के लिये ट्रंप प्रशासन भारत-जापान संबंधों के महत्त्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुका है। ट्रंप की हिंद-प्रशांत नीति उनके पूर्ववर्ती ओबामा की एशिया केंद्रित नीति का ही नया रूप है। ओबामा ने 2011 में इसे पेश किया था, जिसे बाद में ‘एशियाई पुनर्संतुलन’ का नाम दिया गया।
हिंद प्रशांत रणनीति का प्रमुख हितधारक अमेरिका है यही कारण है कि उसने एशिया उपमहाद्वीप में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अपनी पैसिफिक कमांड स्ट्रेटेजी को बदलकर इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी का नया नाम दिया है।
अमेरिका एशियाई क्षेत्र के देशों पर अपना प्रभुत्व और प्रभाव प्रदर्शित करना चाहता है साथ ही वह चीन के तेज़ी के साथ विश्व महाशक्ति के रूप में उभरने को काउंटर करना चाहता है।
एक अनुमान के अनुसार चीन 2027 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत को एक बड़े प्लेयर के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा है। अतः इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी में वह भारत को एक बड़ी संभावना के रूप में देख रहा है।
2. भारत
भारत भी इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। वह पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार, आर्थिक विकास तथा समुद्री सुरक्षा में भागीदारी के लिये इच्छुक है।
भारत महाशक्ति की ओर बढ़ रहे चीन को कठिन प्रतिस्पर्द्धा पेश करना चाहता है। अतः वह इंडो-पैसिफिक रीजन में स्थित देशों को प्रभावित करने के लिये अमेरिका की मदद चाहता है।
हिंद महासागर विश्व का एकलौता महासागर है, जिसका नाम भारत के नाम पर है, लेकिन वर्तमान में यहाँ हो रहे बदलावों को लेकर भारत ने अधिक गंभीरता नहीं दिखाई है, किंतु हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत गंभीर है तथा इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम करने के साथ शांति, स्थिरता तथा मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने का पक्षधर है।
इन सभी उद्देश्यों के साथ भारत एक नई मेरीटाइम सिक्यूरिटी स्ट्रेटेजी भी बनाना चाहता है। हाल ही में भारत, अमेरिका तथा जापान के साथ एक बड़ा नेवल कमांड अभ्यास (मालाबार अभ्यास) इस नई मेरीटाइम सिक्यूरिटी स्ट्रेटेजी का हिस्सा है।
इस प्रकार विभिन्न देशों के साथ इस तरह के नौसैनिक अभ्यास के द्वारा भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एक बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है।
अपने एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पूर्वी एशिया के देशों में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है।
पूर्वोत्तर भारत में तेज़ विकास और समावेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना भारत का प्रमुख उद्देश्य है।
3. चीन
चीन अपने ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के माध्यम से विश्व की महाशक्ति के रूप में अपने को बदलने के लिये दुनिया के वचीन अपने ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के माध्यम से विश्व की महाशक्ति के रूप में अपने को बदलने के लिये दुनिया के विभिन्न देशों में इंफ़्रास्ट्रक्चर तथा कनेक्टिविटी पर भारी निवेश कर रहा है।
उसकी इस पहल का उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना भी है।
हम सभी जानते हैं कि चीन विश्व महाशक्ति बनने की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है वहीँ दूसरी तरफ विश्व की दूसरी विकसित अर्थव्यवस्थाएँ, जैसे- अमेरिका, रूस, फ़्राँस के आर्थिक विकास की गति स्थिर हो गई है।
हम सभी चीन की काल्पनिक मोतियों की माला नीति से परिचित हैं। इस नीति के ज़रिये वह भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है तथा इंडो पैसिफिक क्षेत्र पर अपनी उपस्थिति दर्शा रहा है।
उदाहरण के लिये चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख हितधारक है। हाल ही में श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन के हाथों बेच दिया है।
बांग्लादेश का चिटगाँव पोर्ट भी रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है जहाँ चीन की उपस्थिति मौजूद है। म्याँमार की सितवे परियोजना भी चीन की मोतियों की माला नीति का हिस्सा है।
जिबूती में तैयार चीन के पहले विदेशी नौसैनिक अड्डे और मालदीव के कई निर्जन द्वीपों पर उसके काबिज होने के बाद हिंद महासागर बीजिंग का भू-सामरिक अखाड़ा बनता जा रहा है।
इससे पहले वह दक्षिण चीन सागर में कई कृत्रिम द्वीप बनाकर उनका सैन्यीकरण करने में सफल रहा है।
इस प्रकार चीन मोतियों की माला नीति के तहत हिंद महासागर क्षेत्र को चारों तरफ से घेर रहा है तथा अपना प्रभुत्व कायम कर रहा है। अतः भारत को चीन से सावधान रहने की ज़रूरत है।
4. जापान
जापान ने मुख्य रूप से भारत के पूर्वोत्तर तटीय क्षेत्र में काफी निवेश किये हैं। उल्लेखनीय है कि जापान के किंग और क्वीन पहली बार जब भारत दौरे पर आए थे तब उन्होंने तमिलनाडु का भी दौरा किया था क्योंकि ऐसा माना जाता है कि तमिलनाडु प्रमुख राज्य है जहाँ जापानी निवेश अधिक हुए हैं।
अहमदाबाद तथा मुंबई के बीच प्रस्तावित बुलेट ट्रेन परियोजना में जापान का सॉफ्ट बैंक कम ब्याज दर पर प्रमुख ऋण प्रदाता है।
अतः जापान भारत के साथ द्वीपक्षीय संबंधों तथा सहयोग को मज़बूती प्रदान करने का इच्छुक रहा है। अर्थात् यह सहयोग भी इंडो पैसिफिक स्ट्रेटेजी का ही हिस्सा है।
निवेश के अलावा जापान हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के साथ भागीदारी कर समुद्रतटीय ताकत प्रदर्शित करने के साथ अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है, जो क्वाड अवधारणा के अस्तित्व में आने का प्रमुख कारण है।
                                   क्वाड (QUAD) की अवधारणा
क्वाड को ‘स्वतंत्र, खुले और समृद्ध’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिये चार देशों के साझा उद्देश्य के रूप में पहचाना जाता है।
क्वाड भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया की संयुक्त रूप से अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता है। 13वीं ईस्ट एशिया समिट के दौरान ही क्वाड सम्मेलन का भी आयेाजन किया गया था। यह क्वाड सम्मेलन मुख्यत: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अवसंरचनात्मक परियोजनाओं एवं समुद्री सुरक्षा योजनाओं पर केंद्रित था।
                                                 क्वाड की पृष्ठभूमि
एक संकल्प के रूप में ‘क्वाड’ का गठन 2007 में भारत, जापान, यूएस और ऑस्ट्रेलिया द्वारा समुद्री आपदा के समय बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास संबंधी कार्यों में सहयोग के लिये किया गया था।
लगभग एक दशक निष्क्रिय रहे इस समूह को वर्ष 2017 में पुनर्जीवित किया गया।
                        उद्देश्य
वर्तमान में इस समूह का संदर्भ बदल गया है, अब इसका लक्ष्य है-‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र, समृद्ध और मुक्त बनाना।’
यद्यपि समूह का घोषित लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र की समृद्धि व खुलेपन से संबंधित है, किंतु इसका मुख्य लक्ष्य बेल्ट रोड पहल के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी दबदबे को नियंत्रित करना है।
उल्लेखनीय है कि चीन अपनी OBOR के माध्यम से हिंद-प्रशांत सहित अन्य छोटे-छोटे देशों पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
क्वाड को ‘नियम-आधारित आदेश’ को ध्यान में रखते हुए पुनर्जीवित किया गया था, ताकि नेविगेशन एवं ओवर फ्लाइट की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय नियम का सम्मान, कनेक्टिविटी का प्रसार एवं समुद्री सुरक्षा को सहयेाग के मुख्य तत्त्व के रूप में पहचान मिल सके। इसमें अप्रसार एवं आतंकवाद जैसे मुद्दों को भी शामिल किया गया।
‘क्वाड’ को Quadrilateral Security Dialogue (QSD) के नाम से भी जाना जाता है। इस रणनीतिक वार्ता के साथ-साथ 2002 से मालाबार नामक संयुक्त सैन्य अभ्यास भी चल रहा है। मालाबार अभ्यास में अमेरिका, जापान और भारत शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया इस अभ्यास में भाग नहीं लेता है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का सिद्धांत है कि यह क्षेत्र मुक्त और समावेशी बने जहाँ विभिन्न देश अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करें।


चीन ने दक्षिण चीन सागर में आर्टिफीशियल आइलैंड्स तैयार करना शुरू किया है जिससे वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया आदि देश नाखुश हैं तथा उनके द्वारा इसे लेकर चिंता जाहिर की गई है।
   हिंद-प्रशांत रणनीति की प्रासंगिकता
देशों के बीच समूहों के गठन से व्यापार तथा वाणिज्य की दृष्टि से द्वीपक्षीय तथा व्यापारिक संबंध मज़बूत होंगे साथ ही पीपुल-टू-पीपुल संपर्क को बढ़ावा मिलेगा।
चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल तथा भारत की ‘एक्ट ईस्ट पालिसी’ का लक्ष्य शेष विश्व में इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा कनेक्टिविटी का विकास करना है। अतः इन दोनों पहलों को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विकास हेतु एकजुट होने की ज़रूरत है।
भारत और चीन को इस क्षेत्र में शत्रुता त्यागकर शांति और समरसता लाने हेतु सहयोग करना चाहिये। इससे अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करने को बल मिलेगा तथा क्षेत्रीय विवादों का समाधान हो सकेगा।
चीन को किसी भी अंतर्राष्ट्रीय कानून को नहीं तोड़ने की नीति पर चलना होगा ताकि छोटे देशों पर चीन की विस्तारवादी नीति का प्रभाव न दिखाई दे।
इस प्रकार आपसी बातचीत तथा कुटनीतिक संबंध से हिंद-प्रशांत रणनीति भविष्य में सफल हो सकती है। इस तरह के प्रयाससे ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित की जा सकती है।
                         निष्कर्ष

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र आर्थिक और रणनीतिक रूप से वैश्विक महत्त्व के केंद्र के रूप में उभर रहा है। यदि इस क्षेत्र के हितधारक एक खुले, नियम-आधारित व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये कार्य नहीं करते हैं, तो सुरक्षा की स्थिति बिगड़ती रहेगी, जिसका प्रभाव दुनिया भर पर पड़ना संभावित है। आसियान जैसे समूहों को सामूहिक रूप से चीन से संपर्क स्थापित करना होगा। चीन की आक्रामकता और ऋण जाल (Debt Trap) कूटनीति, जो संप्रभुता को प्रभावित करती है, भारतीय कूटनीति की परीक्षा ले रही है। वर्तमान में जापान, भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा सहयोग तेज़ी से बढ़ रहा है। संपूर्ण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इस सहयोग को आगे बढ़ाने का समय आ गया है।

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