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अरावली पर संकट

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों में निर्माण कार्य की अनुमति देने से संबंधित हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित संशोधित नए कानून को लागू करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह संशोधित कानून की प्रति कोर्ट में पेश करे और फिलहाल इस कानून के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट ने 60 हज़ार एकड़ वन क्षेत्र में निर्माण की इज़ाजत देने वाले इस कानून को न्यायालय की अवमानना बताया।
क्यों हस्तक्षेप किया सुप्रीम कोर्ट ने?

दरअसल हरियाणा सरकार ने 27 फरवरी को हरियाणा विधानसभा में पंजाब भूमि परिरक्षण संशोधन विधेयक, 2019 पारित कर अरावली संरक्षित क्षेत्र में अवैध निर्माण के एक बड़े हिस्से को वैध बनाने और इस क्षेत्र में पेड़ काटने और निर्माण करने की अनुमति दे दी थी। हरियाणा विधानसभा ने पंजाब भूमि परिरक्षण कानून (हरियाणा संशोधन अधिनियम 2019) की धारा 2, 3, 4 और 5 में संशोधन किया था जिसके ज़रिये अरावली पहाड़ियों की संरक्षित 29682 हेक्टेयर भूमि को विकास के लिये खोल दिया गया। इसमें गुरुग्राम की 6869 हैक्टेयर और फरीदाबाद की करीब 4227 हेक्टेयर भूमि भी शामिल है। इसका असर फरीदाबाद के कांत एन्क्लेव पर भी पड़ेगा, जिसके मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों के तहत अरावली के संरक्षित वन क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण या खनन की अनुमति नहीं है।
न्यायमित्र रंजीत कुमार ने हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब लैंड प्रिज़र्वेशन (पीएलपीए) में संशोधन की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को देते हुए बताया कि इससे अरावली क्षेत्र के काफी बड़े हिस्से में निर्माण की इज़ाजत दे दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को न्यायालय के आदेश की अवहेलना का दोषी बताते हुए कहा कि यह बहुत आहत करने वाली बात है कि आप वनभूमि को बर्बाद कर रहे हैं। आप वन भूमि को इस तरह बर्बाद नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह संशोधित कानून की प्रति कोर्ट में पेश करे और फिलहाल संशोधित कानून के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
पंजाब भूमि परिरक्षण अधिनियम

वर्ष 1900 में पंजाब की तत्कालीन सरकार ने पंजाब भूमि परिरक्षण अधिनियम लागू किया था। यह अधिनियम भूमिगत जल के संरक्षण और कटावग्रस्त क्षेत्रों या कटाव संभावी क्षेत्रों को संरक्षण प्रदान करता है।
इस कानून का अधिकार क्षेत्र समय के साथ विकसित होता रहा। इसमें पहला बड़ा संशोधन 1926 में किया गया था, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य लोगों को स्वामित्व के अधिकारों से वंचित करना नहीं है।
इस कानून की धारा 4 और 5 के तहत जारी आदेश और अधिसूचनाएं लगभग 11 हज़ार वर्ग किमी. क्षेत्र पर लागू होती हैं।
ये आदेश और अधिसूचनाएँ राज्य के 22 ज़िलों में से 14 ज़िलों के भौगोलिक क्षेत्र पर पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से लागू होती हैं।
पेड़ों की कटाई को विनियमित करने के प्राथमिक उद्देश्य से (हरियाणा राज्य में पेड़ों की कटाई को विनियमित करने के लिये अपना कोई कानून नहीं था) इस कानून के इन आदेशों और अधिसूचनाओं के तहत अधिकांश क्षेत्र लाया गया।
फिलहाल राज्य में पेड़ों की कटाई को पंजाब भूमि परिरक्षण अधिनियम की धारा 4 के तहत सामान्य आदेश जारी करके नियंत्रित किया जाता है।
             अरावली पर्वत श्रृंखला

अरावली मुख्यतः भारत के राजस्थान में स्थित एक पर्वतमाला है। भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला मानी गई है और यह विश्व में भी प्राचीनतम है। यह पर्वत श्रृंखला राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बाँटती है। अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर सिरोही ज़िले में गुरुशिखर (1727 मीटर) है, जो माउंट आबू में है। अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किलोमीटर है, अरावली पर्वत श्रृंखला का लगभग 80% विस्तार राजस्थान में है। अरावली की औसत ऊँचाई लगभग 930 मीटर है तथा इसकी दक्षिण की ऊंचाई व चौड़ाई सर्वाधिक है। अरावली पर्वतमाला प्राकृतिक संसाधनों एवं खनिज से परिपूर्ण है और पश्चिमी मरुस्थल के विस्तार को रोकने में मदद करती है। यह बाना, लूनी, साखी एवं साबरमती जैसी नदियों का उदगम स्थअरावली में वन्यजीव

अरावली के जंगल में बड़ी संख्या में वन्यजीव रहते हैं और इनमें कुछ तो विलुप्त प्रजाति के हैं। दक्षिण हरियाणा क्षेत्र में भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुड़गांव, मेवात, फरीदाबाद में सवा लाख एकड़ एरिया अरावली का है। देशभर में दूसरा सबसे कम वन क्षेत्र (3.7%) हरियाणा में है। राज्य में स्थित अरावली पर्वत श्रृंखला के वन्यजीवों को बचाने के लिये 7 वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और तीन चिड़ियाघर बनाए गए हैं। हिरण और मोर के लिये तीन ब्रीडिंग सेंटर बनाए गए हैं। गिद्धों के संरक्षण पर अलग से ध्यान दिया जा रहा है।

        दिल्ली NCR की शील्ड है अरावली

अरावली के घने जंगलों का आवरण वाहनों और औद्योगिक प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से हवा को शुद्ध करने में मदद करता है।
देशी पेड़ों, झाड़ियों और जड़ी-बूटियों की लगभग 400 प्रजातियाँ, 200 देशी और प्रवासी पक्षी प्रजातियाँ और तेंदुए, सियार, नीलगाय और लकडबग्घा सहित कई अन्य वन्यजीव अरावली के जंगलों में पाए जाते हैं।
अरावली की पहाड़ियाँ भूजल रिचार्ज में भी मदद करती हैं, जो हर वर्ष इस क्षेत्र में तपती गर्मी के महीनों के दौरान होने वाली पानी की कमी को देखते हुए महत्वपूर्ण है।
अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान से आने वाली झुलसाने और जानलेवा गर्म हवाओं को सीधे आने से रोकती है। अरावली की वज़ह से NCR का तापमान 6 से 8 डिग्री तक कम रहता है।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने 2017 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि हरियाणा में अरावली पर्वतमाला के जंगल अब भारत में सबसे संकटग्रस्त वन गए हैं। यहाँ अधिकांश देशी पौधों की प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं। तेज़ी से वनों की कटाई और विकासात्मक गतिविधियाँ इसके लैंडस्केप को नष्ट कर रही हैं जिनके तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।
अवैध खनन चिंता का एक बड़ा कारण
पिछले वर्ष अक्तूबर में राजस्‍थान में अरावली की पहाड़ियों पर हो रहे अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट ने तब रोक लगाने को कहा था जब राजस्थान सरकार ने यह स्वीकार किया कि अरावली की 138 में से 28 पहाड़ियाँ गायब हो चुकी हैं। इससे पहले 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन से जुड़े 82 लाइसेंस यह कहते हुए रद्द कर दिये थे कि बिना पर्यावरणीय मंज़ूरी और अध्ययन रिपोर्ट के खनन की इज़ाजत नहीं दी जा सकती। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले 2002 में इस क्षेत्र के पर्यावरण को बचाने के लिये खनन पर पाबंदी लगा दी थी। राजस्थान से लेकर हरियाणा तक एक विशाल इलाके में अवैध खनन के कारण ज़मीन की उर्वरता काफी कम हो चुकी है। इससे हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सूखा और राजस्थान के रेतीले इलाके में बाढ़ के हालात बनने लगे हैं तथा मानसून के पैटर्न में भी बदलाव आया है। आपको बता दें कि अवैध खनन का प्रमुख कारण इस इलाके में कॉपर, लेड, ज़िंक, सिल्वर, आयरन, ग्रेनाइट, लाइम स्टोन, मार्बल, चुनाई पत्थर जैसे खनिजों का पाया जाना है। राजस्थान के कुल खनिजों में से 90% अरावली पर्वत श्रृंखला और उसके आसपास पाए जाते हैं।
यदि सरकारें अब भी इसे बचाने के लिये आगे नहीं आईं तो इस क्षेत्र का पूरा पर्यावरण खतरे में पड़ जाएगा। अरावली पर्वत श्रृंखला बची रहेगी, तो इस क्षेत्र का पर्यावरण भी बचा रहेगा। लेकिन हरियाणा में इसका उलटा रहा है...पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम में हरियाणा के करीब आठ ज़िलों का सारा क्षेत्र आ गया है। मूल अधिनियम में संशोधन से अरावली क्षेत्र के पर्यावरण की क्षति का रास्ता खुल जाएगा तथा पूर्ण या आंशिक रूप से लागू होता है। गुरुग्राम,रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ ज़िलों में यह पूर्ण रूप से लागू होता है। इन ज़िलों का एक बड़ा भूभाग निजी स्वामित्व और कानूनी रूप से कृषि एवं गैर-वानिकी भूमि के रूप में है। सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की ज़मीन भी इस भूभाग में आती है। अरावली की पहाड़ियाँ दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को धूल, आंधी, तूफान और बाढ़ से बचाती रही हैं, लेकिन अरावली में जारी अवैध खनन से थार रेगिस्तान की रेत दिल्ली की ओर लगातार खिसकती जा रही है। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अरावली को इसी तरह बर्बाद किया जाता रहा तो आने वाले वर्षों में हालात और खराब हो सकते हैं।

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