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विशेष : FATF : शिकंजे में पाकिस्तान

  फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)
FATF एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। इसका उद्देश्य मनी लॉंड्रिंग, आतंवादियों को वित्तपोषण और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को बचाए रखने से जुड़े खतरों से निपटना है।
इन खतरों से निपटने के लिये यह मंच नीतियाँ बनाता है साथ ही यह संस्था इन खतरों से निपटने के लिये कानूनी विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देती है।
FATF एक नीति निर्माण निकाय है जो मनी लांड्रिंग, टेरर फंडिंग जैसे मुद्दों पर दुनिया में विधायी और नियामक सुधार लाने के लिये आवश्यक राजनीतिक इच्छा शक्ति पैदा करने का काम करता है।
यह टास्क फोर्स धनशोधन और टेरर फेंडिंग का सामना करने के लिये मानक निर्धारित करती है, नीतियाँ बनाती है और उन नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करती है।
FATF का गठन

बैंकिंग सिस्टम और वित्तीय संस्थानों के सामने मौजूदा खतरों को देखते हुए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के गठन का फैसला किया गया था।
FATF का गठन 1989 में जी-7 देशों की पेरिस में आयोजित बैठक में हुआ था।
शुरुआत में FATF का मकसद मनी लॉड्रिग को रोकना था। 2001 में इसके कार्य क्षेत्र का विस्तार किया गया।
इसके कार्यक्षेत्र में आतंकी फंडिंग को रोकना भी शामिल हो गया। इसके बाद से FATF आतंकी फंडिंग पर रोक के लिये नीतियाँ बनाती है और उनके प्रभावी अमल पर भी नज़र रखती है।
सदस्य देश

शुरुआत में FATF में 16 सदस्य देश शामिल थे। 1991 और 1992 में इसका दायरा बढ़ा और सदस्यता 28 तक पहुँच गई।
वर्ष 2000 तक इसकी सदस्यता 31 तक पहुँच गई। फिलहाल FATF में कुल 38 सदस्य देश हैं। इनमें 36 देशों के साथ दो क्षेत्रीय संस्थाएँ यूरोपियन कमीशन और गल्फ ऑफ कोऑपरेशन कौंसिल शामिल हैं।
एक तरह से यह टास्कफोर्स दुनिया के सबसे प्रमुख वित्तीय देशों का प्रतिनिधित्व करती है।
भारत 2010 में FATF का सदस्य बना। पाकिस्तान इसका सदस्य नहीं है। इंडोनेशिया और सऊदी अरब इसमें पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल हैं।
FATF का अध्यक्ष सदस्य देशों में से ही एक साल के कार्यकाल के लिये चुना जाता है। अध्यक्ष का कार्यकाल 1 जुलाई से शुरू होता है और अगले साल 30 जून को खत्म होता है।
अध्यक्ष ही FATF प्लैनरी की बैठक बुलाता है और इसकी अध्यक्षता करता है। FATF की डिसीज़न मेंकिंग बॉडी FATF प्लैनरी है जिसकी हर साल तीन बार बैठक होती है।
इसका सचिवालय पेरिस स्थित आर्थिक सहयोग विकास संगठन के मुख्यालय में स्थित है।
महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ
मनी लॉड्रिंग और आतंकी फंडिंग को रोकने के लिये FATF ने सिफारिशों की सीरीज़ तैयार की है जिसे इन चुनौतियों से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानक के तौर पर पहचान मिली है।
पहली बार FATF ने 1990 में सिफारिशें जारी कीं जिसमें 1996, 2001, 2003 और 2012 में संशोधन किया गया जिससे कि बदलते हालात में इन नीतियों की प्रासंगिकता बनी रहे।
FATF नीतियों के अमल की निगरानी करती है। इसका कार्य यह देखना है कि दुनिया के तमाम देश उन उपायों को अपना रहे हैं या नहीं जिससे मनी लॉड्रिंग और आतंकी फंडिंग पर रोक लग सके।
FATF ने मनी लांड्रिंग और आतंकी फंडिंग के खतरे से निपटने के लिये 40 सुझावों के साथ ही 9 विशेष सुझाव दिये हैं। दुनिया के तमाम देशों ने इन सुझावों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के तौर पर स्वीकार किया है। इन चुनौतियों से निपटने में ये सुझाव काफी कारगर साबित हुए हैं।
पृष्ठभूमि
पाकिस्तान को दुनिया में अलग-थलग करने और आतंकवाद को मिल रहे पाकिस्तानी संरक्षण की हकीकत दुनिया में साबित करने के भारतीय कूटनीतिक प्रयास को एक और कामयाबी मिली है। वैश्विक स्तर पर आतंकी संगठनों पर नज़र रखने वाली संस्था FATF यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में फैसला लिया गया है कि पाकिस्तान अभी ‘ग्रे लिस्ट’ में ही बरकरार रहेगा।
पेरिस में हुई बैठक में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई सबूत पेश किये और कड़े शब्दों में उसे ब्लैक लिस्ट में शामिल देशों की सूची में डालने को आवाज़ बुलंद की।

वहीँ पाकिस्तान सरकार ने जमात-उद-दावा जैसे संगठन को बैन कर मांग की है कि उसे ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर किया जाए। लेकिन FATF ने पाकिस्तान की मांग को खारिज किया तथा चेतावनी भी दे दी।
FATF में लिये गए फैसले
पुलवामा में CRPF के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले के बाद पूरे विश्व से पाकिस्तान पर उंगलियाँ उठ रही हैं। वैश्विक स्तर पर आतंकी संगठनों की फंडिंग पर नज़र रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान के नापाक हरकतों के चलते उसे ‘ग्रे लिस्ट’में बरकरार रखा है। उसकी यह स्थिति अक्तूबर तक कायम रहेगी। इसके लिये FATF द्वारा पाकिस्तान को अक्तूबर तक का वक्त दिया गया है। यह निर्णय 17 से 22 फरवरी तक फ्राँस की राजधानी पेरिस में हुई इस संस्था की बैठक में यह लिया गया। हालाँकि भारत ने FATF से पाक को काली सूची में डालने के लिये मज़बूती के साथ अपना पक्ष रखा था।
पुलवामा में CRPF के जवानों पर हुए हमलों में पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के शामिल होने के बाद भारत की दलील थी कि आतंकियों की फंडिंग पर रोक लगाने के लिये पाकिस्तान कोई कदम नहीं उठा रहा है। FATF ने पाकिस्तान को चेताया है कि वह आतंकी फंडिंग को रोकने के लिये एक्शन प्लान पर काम करे। संस्था ने यह भी आरोप लगाया है कि जनवरी 2019 तक पाकिस्तान ने इस संबंध में कुछ नहीं किया है और मई 2019 तक के लक्ष्य को पाने के लिये वह एक्शन प्लान पर काम करने में कोताही बरत रहा है। पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इस बार भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और FATF की नाराज़गी से बचने के लिये दिखावे के तौर पर जमात-उल-दावा के सरगना हाफिज सईद और उसके संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही उसने जमात-उल-दावा की चैरिटी शाखा फलह-ए-इंसानियत पर भी पाबंदी लगाई है लेकिन यह पाकिस्तान का एक छलावा भर है। जानकारों की मानें तो पाकिस्तान की यह कार्यवाही वैश्विक संगठन FATF की संभावित कार्रवाई से बचने की कवायद का हिस्सा है। FATF ने पाकिस्तान की हरकतों को देखते हुए पिछले साल भी पाकिस्तान को ‘ग्रे सूची’ में डाल दिया था। इस बार की बैठक में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि हमेशा पाकिस्तान को कार्रवाई से बचाने वाले चीन और सऊदी अरब ने भी ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर आने की उसकी मांग का समर्थन नहीं किया। फिलहाल उत्तर कोरिया और ईरान को इस संस्था ने ब्लैक लिस्ट में डाला है।
आतंकी फंडिंग रोकने में पाकिस्तान के प्रयास नाकाफी
इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवादी गुटों की बड़ी पनाहगाह है। पाकिस्तान में कई आतंकी संगठन सक्रिय हैं। यह बात अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी साबित हो चुकी है। पाकिस्तान विश्व के देशों से विकास के नाम पर लिये गए क़र्ज़ को न केवल आतंकवादी संगठनों को मुहैया कराता है बल्कि उनकी आतंकी गतिविधियों में शरीक भी रहता है। आतंकवादी संगठनों की वित्तीय मदद रोकने को लेकर पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कदमों पर FATF ने पिछले साल असंतोष जताया था। FATF ने कहा था कि अगर पाकिस्तान मनी लॉन्ड्रिंग निरोधी निगरानी संगठन द्वारा काली सूची में डाले जाने से बचना चाहता है तो उसे अपने कानूनी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये ठोस कदम उठाने होंगे। इस मुद्दे पर पाकिस्तान हमेशा झूठा दावा करता रहा लेकिन वास्तविकता यह है कि उसने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए। पाकिस्तान के दावे की जाँच करने के लिये साल 2018 में FATF के एशिया पैसेफिक ग्रुप की 9 सदस्यीय टीम पाकिस्तान गई थी। यह टीम 12 दिनों तक पाकिस्तान में रही। टीम ने अपनी जाँच में पाया कि आतंकी फंडिंग रोकने के लिये पाकिस्तान ने जो प्रयास किये हैं और कानूनी ढाँचा बनाया है वह कुछ खास कर पाने के लिये नाकाफी है। यह ढाँचा आतंकी फंडिंग के सुगठित तंत्र को खत्म कर पाने में सक्षम नहीं है। इस जाँच टीम की रिपोर्ट के आधार पर FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया और पाकिस्तान को कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि अगर वह FATF को संतुष्ट नहीं कर पाया तो उसे काली सूची में डाले जाने का खतरा बढ़ जाएगा।
FATF ने कहा कि आर्थिक संकटों से जूझ रहे पाकिस्तान के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहायता हासिल करना और भी मुश्किल हो जाएगा। हालाँकि इससे पहले भी साल 2012 और 2015 में पाकिस्तान को इस सूची में रखा गया था।
‘ग्रे लिस्ट’ और ‘ब्लैक लिस्ट’

‘ग्रे लिस्ट’का मतलब यह है कि जिस देश पर संदेह होता है कि वह ऐसी कार्यवाही नहीं कर रहा है जिससे कि आतंकवादी संगठन को फंडिंग न हो तो उसे ‘ग्रे लिस्ट’ में रखा जाता है और अगर यह साबित हो जाए कि उस देश से आतंकी संगठन को फंडिंग हो रही है और जो कार्यवाही उसे करनी चाहिये वह नहीं कर रहा है तो उसका नाम ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया जाता है।
वर्तमान में इरान और उत्तर कोरिया को FATF के तहत ‘ब्लैक लिस्ट’ में रखा गया है।
FATF की चेतावनी

सबसे अहम बात यह है कि पाकिस्तान उन आतंकी संगठनों को जो कि खासकर सिर्फ भारत में आतंक फैलाते हैं और मासूम लोगों की हत्या करते हैं, उन्हें आतंकी संगठन मानने से इनकार करता रहा हैI इनमें जमात-उल-दावा और उसका प्रमुख हाफिज सईद, जैश-ए-मोहम्मद और उसका सरगना मसूद अजहर समेत तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के कई बड़े आतंकी शामिल हैं।
ये आतंकी संगठन खुलेआम लोगों से चंदा वसूलते हैं, इनकी खुलेआम रैलियाँ होती हैं और इन रैलियों में ऐसी बातें की जाती हैं जो लोगों को चरमपंथ की तरफ धकेलती हैं।
आतंकी फंडिंग पर पाकिस्तान के दावे और हकीकत में अंतर साफ देखा जा सकता है। समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान कुछ कदम उठाता रहा है। इन संगठनों के नेता नज़रबंद होते हैं, दफ्तर बंद हो जाते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद वही चेहरे फिर नज़र आने लगते हैं, गतिविधियाँ भी वहीं होती हैं, बस संगठन का नाम बदल जाता है।
FATF की काली सूची में डाले जाने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

पाकिस्तान की आर्थिक हालत बेहद खराब है। ऐसा कहा जा सकता है कि पाकिस्तान आर्थिक संकट में फँसा हुआ है।
पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम हो गया है कि अब यह तेल का आयात बिल भुगतान करने के लायक भी नहीं बचा है।
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार महज 8 अरब डॉलर शेष बचा है। पिछले साल जब इमरान खान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तभी से पाकिस्तान खुद को डिफाल्टर होने से बचाने की कोशिश कर रहा है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान ने पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी मदद की गुहार लगाई थी।
पाकिस्तान को आर्थिक मदद के लिये चीन, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की ओर देखना पड़ रहा है।
विदेशी मुद्रा के मामले में पाकिस्तान की हालत लगातार खराब हो रही है। पाकिस्तानी रुपए की विनिमय दर 140 रुपए प्रति डॉलर पर पहुँच गई है।
पाकिस्तान पर विदेशी क़र्ज़ का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत ने पाकिस्तान से MFN का दर्जा वापस ले लिया है।
पाकिस्तान से आने वाली चीज़ों पर कस्टम ड्यूटी को बढ़ाकर 200 प्रतिशत कर दिया गया है।
अगर भविष्य में पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया जाता है तो पाकिस्तान को आर्थिक मोर्चे पर और कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। दूसरे देश पाकिस्तान में निवेश करना बंद कर देंगे। पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग मिलना बंद हो जाएगा। विदेशी कारोबारियों और बैंकों का पाकिस्तान में कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ पाकिस्तान में अपना कारोबार समेट सकती हैं।
पाकिस्तान को विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) और यूरोपियन यूनियन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से क़र्ज़ मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा मूडीज़, स्टैंडर्ड एंड पूअर और फिंट जैसी कंपनियाँ उसकी रेटिंग भी घटा सकती हैं।
पाकिस्तान को यदि अपनी अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसा बढ़ाना है तो उसे हर हाल में आतंकी फंडिंग रोकने के लिये ठोस कार्यवाही करनी होगी। आने वाले वक्त में उसके पास इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।
निष्कर्ष

FATF द्वारा पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरकरार रखना और अक्तूबर 2019 तक सुधार न करने पर ब्लैक लिस्ट में डालने की चेतावनी देना एक प्रशंसनीय कदम है। इससे पाकिस्तान के साथ उन देशों को भी एक संदेश जाएगा जो आतंकवाद का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते हैं। सर्वविदित है कि आतंकवाद वैश्विक आपदा है और इसका सामना भी वैश्विक एकजुटता के बिना नहीं किया जा सकता। FATF के प्रयास सराहनीय हैं किंतु सराहनीय परिणाम प्राप्त करना अभी बाकी है, यह तब तक नही हासिल हो सकता जब तक आतंकवाद की जड़ पर सतत् वार नही किया जाता।

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