Skip to main content

भारतीय अर्थव्यवस्था चौथी औद्योगिक क्रांति में विवादों का ऑनलाइन समाधान तंत्र

            चौथी औद्योगिक क्रांति में विवादों का ऑनलाइन समाधान तंत्र
तेज़ी से हो रहे तकनीकी परिवर्तनों और डिजिटलीकरण की वज़ह से होने जा रही चौथी औद्योगिक क्रांति ने अपने शैशवकाल में ही वैश्विक व्यापार, आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति पर गहरा प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। ई-कॉमर्स ने हाल के वर्षों में अरबों डॉलर की आर्थिक गतिविधियों को जन्म दिया है और डेटा को सीमाबद्ध करना लगभग असंभव होने के कारण इसमें तेज़ी का दौर लगातार जारी है। इसने बिज़नेस के नए प्रारूपों को जन्म दिया है और पिछले दशक में वैश्विक GDP में 10% वृद्धि केवल ई-कॉमर्स की वज़ह से हुई ।हाल ही में भारत सरकार ने बड़ी वैश्विक ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये कुछ बड़ी नीतिगत पहलों की घोषणा की है। लेकिन जहाँ तक सवाल ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र स्थापित करने का है, तो इस दिशा में अभी एक लंबा रास्ता तय करना होगा।
                                ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र क्या है?
ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र से तात्पर्य सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली या तंत्र बनाने से है। यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें सुलह या मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का निपटारा किया जा सकता है। इस विधि में विवादों के समाधान की सुविधा के लिये सभी पक्षों द्वारा ऑनलाइन प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है। ऑनलाइन विवाद समाधान में सूचना प्रबंधन और संचार उपकरणों का इस्तेमाल संपूर्ण कार्यवाही या इसके किसी भाग पर किया जा सकता है। इसके अलावा, इसका उन तरीकों पर भी प्रभाव पड़ता है जिनके द्वारा विवादों को हल किया जा रहा है।
                                     भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र
1.UNICITRAL यानी United Nations Commission on International Trade Law (व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र का आयोग) ने 1985 में UNICITRAL अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पर मॉडल कानून को अपनाया तथा 1980 में UNICITRAL सुलह नियम अंगीकार किये गए।
2.संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उक्त मॉडल कानून और नियमों का उपयोग कर उन मामलों को हल करने की सिफारिश की है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक संबंधों के संदर्भ में विवाद उत्पन्न होता है और पक्षकार सुलह के लिये उस विवाद के सौहार्द्रपूर्ण समाधान की तलाश करते हैं।
3.भारत ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में वैकल्पिक विवाद समाधान के इन समान सिद्धांतों को भी शामिल किया है, जिसे 2015 में संशोधित किया गया था। यह अधिनियम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के लिये मध्यस्थता, सुलह आदि जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र प्रदान करता है।
4.विधि और न्याय मंत्रालय ने भी मध्यस्थता, पंच-निर्णय और सुलह के माध्यम से ऑनलाइन विवाद समाधान पेश करने के लिये उपाय किये हैं।
   चौथी औद्योगिक क्रांति (industry 4.0) की अवधारणा

पिछले वर्ष अक्तूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में चौथी औद्योगिक क्रांति के केंद्र की लॉन्चिंग की थी। चौथी औद्योगिक क्रांति अर्थात् इंडस्ट्री 4.0 में मानव जीवन के वर्तमान और भविष्य को बदलने की क्षमता मौजूद है। कृत्रिम बौद्धिकता, मशीन-लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन और बिग डेटा जैसे उभरते क्षेत्र भारत को विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं तथा लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं। यह भारत के लिये न सिर्फ एक औद्योगिक परिवर्तन बन सकती है बल्कि सामाजिक परिवर्तन लाने में भी सहायक हो सकती है। इंडस्ट्री 4.0 में भारत में अपरिवर्तनीय रचनात्मक बदलाव लाने की क्षमता है, जिससे भारत में काम करने में आवश्यक तेज़ी आएगी और काम-काज बेहतर बनाने में सहायता होगी।
डिजिटल इंडिया अभियान ने डेटा को भारत के गाँव तक पहुँचा दिया है तथा देश में संचार-सघनता, इंटरनेट कवरेज और मोबाइल इंटरनेट सुविधा लेने वालों की संख्या बहुत बढ़ी है। आज विश्व में सबसे अधिक मोबाइल डेटा खपत भारत में होती है और यहाँ डेटा सबसे कम कीमत पर उपलब्ध है। देश में कृत्रिम बौद्धिकता में अनुसंधान हेतु एक मज़बूत अवसंरचना बनाने के लिये राष्ट्रीय रणनीति तैयार की गई है। इंडस्ट्री 4.0 और कृत्रिम बौद्धिकता के विस्तार से स्वास्थ्य, कृषि, यातायात और स्मार्ट मोबिलिटी जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए जा सकते हैं।
     ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र की आवश्यकता क्यों?
1.अदालतों, सरकारों, कंपनियों, व्यक्तियों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों आदि सहित सभी हितधारकों के लिये विवाद समाधान एक जटिल मामला है। इसकी आवश्यकता वहाँ अधिक पड़ती है, जहाँ किसी कानून को लेकर विवाद होता है, क्योंकि अलग-अलग देशों में विवाद समाधान के कानून भी अलग-अलग हो सकते हैं। ऐसे विवादों की जटिलता कम करने के लिये देशों को एक आदर्श आचार संहिता अपनानी चाहिये जिसका समावेश उनके घरेलू कानूनों में होना चाहिये। भारतीय न्यायिक प्रणाली पहले से ही मुकदमों के बोझ तले दबी है और ऐसे में ई-कॉमर्स विवादों के बढ़ते मुद्दों के साथ हालात और खराब हो जाएंगे। देश की अदालतों की भूमिका को सीमित करने और विवादों के निपटारे के लिये प्रक्रिया स्थापित करने में पार्टियों की इच्छा को प्राथमिकता देने के लिये भी ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र का होना ज़रूरी है। सीमित संख्या में कानूनी प्रावधानों के माध्यम से प्रक्रियात्मक निष्पक्षता से काम करने के लिये भी ऐसे तंत्र का होना आवश्यक है ताकि कोई भी पक्ष इससे मिले समाधान के प्रति असहमति जाहिर न कर सके। उन नियमों को लागू करने के लिये भी इसका होना ज़रूरी है जो मध्यस्थता को आगे बढ़ाते हैं, भले ही संबंधित पक्ष प्रासंगिक प्रक्रियात्मक मामलों पर समझौते तक नहीं पहुँच पाए हों। ऑनलाइन मध्यस्थता सीमाओं के बावजूद वर्तमान समय में यह तंत्र बिज़नेस टू बिज़नेस (B2B) और बिज़नेस टू कंज्यूमर (B2C) विवादों को सुलझाने के सबसे महत्त्वपूर्ण तरीकों में से एक माना गया है।
ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र की राह में प्रमुख चुनौतियाँ
1.विवादों के समाधान के लिये मध्यस्थता का तरीका भारत में अधिक प्रचलित नहीं है। अभी भी देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की पहुँच एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान किये बिना ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र के विस्तार की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
2.संरचनात्मक और संस्थागत सीमाएँ भारत सहित लगभग सभी विकासशील देशों में ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र की पहुँच को बाधित करती हैं।
3.आपराधिक मामलों और वैवाहिक विवादों के लिये ऑनलाइन मध्यस्थता उपयुक्त विकल्प नहीं है। इसके अलावा, भारत में ऑनलाइन मध्यस्थता के कार्यान्वयन की राह में शिक्षा की कमी और प्रौद्योगिकी तक पहुँच न होना एक और बड़ी कमी है।
4.प्रौद्योगिकी अज्ञानता, जागरूकता में कमी और आशंकित संदेहपूर्ण दृष्टिकोण के मद्देनज़र ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र लोगों के विश्वास को अर्जित करने में सक्षम नहीं है। इस तरह की ऑनलाइन कार्यप्रणाली के प्रति विश्वास समय के साथ विकसित कर और उससे मिले अनुभवों के आधार पर ही बनाया जा सकता है।
5.विवादों को हल करने के लिये सभी पक्षों के बीच आमने-सामने बातचीत न हो पाना भी एक बड़ी समस्या है। साथ ही, ऑनलाइन व्यापार और लेनदेन के विवादों को हल करने के लिये केवल इसी तंत्र पर निर्भरता को भारतीय परिप्रेक्ष्य में ठीक नहीं माना जाता।
6.तकनीक का असमान वितरण अर्थात् सभी तक तकनीक की एक जैसी पहुँच न होना भी इस समाधान तंत्र के राह की एक अन्य बड़ी बाधा है। विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी, इंटरनेट और ई-कॉमर्स के अवसरों का असमान वितरण इस तंत्र की स्वीकृति और मान्यता को बाधित करता है।
7.कुशल वकीलों की कमी की वज़ह से भी ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र के प्रति लोगों की रुचि कम रहती है। इसके लिये वकीलों और लोगों को विवाद समाधान के संभावित उपायों के बारे में कानूनी रूप से जागरूक करने के लिये सेमिनार, प्रशिक्षण और अभियानों के माध्यम से जागरूक करने की आवश्यकता है
                 भविष्य में आने वाली चुनौतियों 
1.भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिये उपाय किये जाने चाहिये। यदि ऐसा नहीं किया गया तो भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र केवल एक सिद्धांत बनकर रह जाएगा।
2.ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर होने वाले विवादों को दूर करने के लिये एक उपयुक्त शिकायत निवारण तंत्र विकसित करना बेहद ज़रूरी है। हमारे द्वारा बनाया गया ऐसा कोई भी तंत्र या प्रणाली ऑनलाइन कार्य करने में सक्षम होनी चाहिये।
3.यह तंत्र बड़े पैमाने पर काम करने में सक्षम होना चाहिये, ताकि बहुत अधिक संख्या में विवाद सामने आने पर भी कार्यक्षमता जस-की-तस बनी रहे।
4.इस तंत्र को स्वचालित निर्णय लेने वाले एल्गोरिदम का इस्तेमाल करके विवादों के कुछ हिस्से को सुलझाने में भी सक्षम होना चाहिये। इससे इस प्लेटफॉर्म की डिजिटल प्रकृति और उसमें अंतर्निहित ई-कॉमर्स लेनदेन का लाभ बेहतर तरीके से उठाया जा सकेगा।
5.यदि कोई ऐसी प्रणाली या तंत्र बन जाता है, जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा कर सके, तो यह मानने का कोई कारण नहीं कि इस तंत्र की कुछ या सभी प्रक्रियाओं को समय के साथ-साथ पारंपरिक विवादों पर लागू न किया जा सके।
6.यह कहा जा सकता है कि ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र विवाद समाधान को गति देने के लिये एक प्रशंसनीय पहल है और यह विवादों को हल करने में काफी हद तक मददगार भी होगा। ऐसा एक मज़बूत तंत्र बन जाने के बाद भारत को और अधिक निवेशक अनुकूल देश के रूप में पेश करके अधिक विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी। भारत में इस प्रणाली को विकसित करने में विधि और न्याय मंत्रालय ने पहल की है। इससे न्यायालयों को बेहतर तरीके से लोगों तक न्याय पहुँचने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। इंटरनेट ई-कॉमर्स के तेजी से विकास को देखते हुए ऑनलाइन विवाद समाधान एक तर्कसंगत और स्वाभाविक कदम है क्योंकि यह विवादों के त्वरित समाधान की सुविधा प्रदान करता है। एक ओर जहाँ घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वाणिज्य ने प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया है, अधिक अवसर प्रदान किये हैं, वहीं इसने जोखिमों को भी बढ़ाया है।
7.भारत में ठोस कानूनी ढाँचा है और व्यवसाय करने की सुगमता निवेशकों के लिये स्वाभाविक विकल्प बन सकता है। फिलहाल भारत में वाणिज्यिक मध्यस्थता एक स्थिर संक्रमणकाल से गुज़र रही है तथा इसे और अधिक सरल होना चाहिये। ई-कॉमर्स और ई-बिज़नेस की वृद्धि के मद्देनज़र ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र समय की मांग है।
देश में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (NDIAC) बनाने की पहल
इसके अलावा, केंद्र सरकार ने नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (NDIAC) की स्थापना के लिये पहल शुरू कर दी है जिसका उद्देश्य संस्थागत मध्यस्थता के लिये एक स्वतंत्र और स्वायत्त व्यवस्था का निर्माण करना है।
           (NDIAC)की प्रमुख विशेषताएँ
1.अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू मध्यस्थता हेतु एक प्रमुख संस्थान के तौर पर खुद को विकसित करने के लिये लक्षित सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना।
2.समाधान हेतु मध्यस्थता और मध्यस्थता संबंधी कार्यवाहियों के लिये सुविधाएँ तथा प्रशासकीय सहयोग प्रदान करना।
3.राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मान्यता प्राप्त पंचों, मध्यस्थों व सुलहकारों या सर्वेक्षकों और जाँचकर्त्ताओं जैसे विशेषज्ञों के पैनल बनाना।
4.प्रोफेशनल तरीके से अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू मध्यस्थताओं और सुलहों का सुगम संचालन सुनिश्चित करना।
5.घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मध्यस्थता और सुलह के संचालन के लिये कम खर्चीली और समयोचित सेवाएँ प्रदान करना।
6.वैकल्पिक विवाद समाधान और संबंधित मामलों के क्षेत्र में अध्ययन को प्रोत्साहित करना तथा झगड़ों के निपटारे की व्यवस्था में सुधारों को प्रोत्साहित करना।
7.वैकल्पिक विवाद समाधान को प्रोत्साहित करने के लिये अन्य राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय समाजों, संस्थानों और संगठनों के साथ सहयोग करना।

Comments

Popular posts from this blog

करेंट अफेयर्स : टेस्ट

1 .इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: यह संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद दूसरी सबसे बड़ी अंतर-सरकारी संस्था है। भारत OIC के पर्यवेक्षक देशों में से एक है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? A केवल 1 B केवल 2 C 1 और 2 दोनों D न तो 1 और न ही 2   click here for answer 2 . प्रधानमंत्री जी-वन योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: इसे देश में 2G इथेनॉल क्षमता निर्मित करने हेतु एक उपकरण के रूप में लॉन्च किया जा रहा है। सेंटर फॉर हाई टेक्नोलॉजी (CHT) इस योजना के लिये कार्यान्वयन एजेंसी होगी। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? A केवल 1 B केवल 2 C 1 और 2 दोनों D न तो 1 और न ही 2     click here for answer 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: सरकार ने 2022 तक पेट्रोल में 10% इथेनॉल सम्मिश्रण किये जाने का लक्ष्य रखा है। तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन शैवाल से प्राप्त होते हैं। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? A केवल 1 B केवल...

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी चर्चा में क्यों? 23 दिसंबर, 2018 को भारत ने परमाणु क्षमता संपन्न लंबी दूरी की इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (Inter Continental Ballistic Missile) अग्नि- IV का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। प्रमुख बिंदु सतह-से-सतह पर मार करने वाली इस सामरिक मिसाइल का परीक्षण डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप पर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज (Integrated Test Range-ITR) के लॉन्च कॉम्प्लेक्स-4 से किया गया। इस द्वीप को पहले व्हीलर द्वीप (Wheeler Island) के नाम से जाना जाता था। मोबाइल लॉन्चर के ज़रिये लॉन्च किये गए इस मिसाइल के उड़ान प्रदर्शन की ट्रैकिंग और निगरानी रडार, ट्रैकिंग सिस्टम और रेंज स्टेशन से की गई। अग्नि- IV मिसाइल का यह 7वाँ परीक्षण था। इससे पहले मिसाइल का परीक्षण 2 जनवरी, 2018 को भारतीय सेना के रणनीतिक बल कमान (strategic force command -SFC) ने इसी बेस से किया था। अग्नि- I, II, III और पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलें सशस्त्र बलों के शस्त्रागार में पहले से ही शामिल हैं जो भारत को प्रभावी रक्षा क्षमता प्रदान करती हैं। अग्नि-IV की विशेषताएँ स्वदेशी तौर पर विकसित व ...

How to prepare for IAS exam

Each year, millions of candidates participate in the UPSC Civil Services Exam. But hard work and preparation in the right direction ensure the success of this review only. It is also difficult to pass the IAS exam, but also to think smartly and have a smart strategy. Many candidates spend a lot of time preparing for this exam and still can not succeed. The main reason for this is that they only work hard, whereas, if we examine here the nature of this test, a special or "smart" job is necessary to succeed. It's smart work or just saying that strategic preparation is the mantra to get you into the list of winners with your failures. Modify the resources of your study. This is a very important part of the preparation and combination of study material, in which you do not have to study new study material or new books during the last phase of your preparation. Because it's not fair to understand and study new themes in such a short time. You may be confused and frustr...