कुछ समय पहले भारत सरकार ने तटीय नियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zone-CRZ) अधिसूचना, 2018 को मंजूरी दी है। इससे तटीय क्षेत्रों में गतिविधियाँ काफी बढ़ जाएंगी, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक विकास की रफ्तार भी बढ़ेगी। इससे न केवल बड़ी संख्या में रोज़गारों का सृजन होगा, बल्कि बेहतर जीवन के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था में मूल्य-वर्द्धन (Value Addition) भी सुनिश्चित होगा। इस अधिसूचना से तटीय क्षेत्रों की अतिसंवेदनशीलता में कमी आने के साथ-साथ उनकी हालत में भी सुधार होगा। इसके साथ ही तटीय क्षेत्रों के संरक्षण संबंधी सिद्धांतों को भी इस अधिसूचना में ध्यान में रखा गया है।
नीली अर्थव्यवस्था में तटीय आर्थिक क्षेत्र
- नीली अर्थव्यवस्था यानी ब्लू इकोनॉमी भारत के आर्थिक विकास कार्यक्रम का महत्त्वपूर्ण घटक है और भारत का 95 प्रतिशत से अधिक का कारोबार समुद्र के जरिये होता है।
- ‘इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन’ की रूपरेखा के जरिये भारत नीली अर्थव्यवस्था को वहनीय, समावेशी और जन आधारित तरीके से प्रोत्साहित करने के पक्ष में है।
- भारत का राष्ट्रीय दृष्टिकोण (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) यानी ‘क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास’ इस धारणा का प्रतीक है।
सागरमाला परियोजना में तटीय आर्थिक क्षेत्र
➤देश में चल रहे सागरमाला कार्यक्रम से समुद्र के ज़रिये सामान के आवागमन तथा बंदरगाह के विकास में तेज़ी आ रही है।
➤इस कार्यक्रम के तहत 600 से अधिक परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिनमें 2020 तक लगभग 8 लाख करोड़ रुपए के निवेश का लक्ष्य रखा गया है।
➤सागरमला राष्ट्रीय परियोजना के तहत 14 तटीय आर्थिक क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है।
➤ये क्षेत्र समुद्र से लगे राज्यों में संबंधित बंदगाहों से जुड़े होंगे और इनमें विनिर्माण सुविधा स्थापित करने के लिये तटीय आर्थिक इकाइयाँ होंगी।
➤तटीय आर्थिक क्षेत्रों की परिकल्पना स्थानिक आर्थिक क्षेत्र के रूप में की गई है, जिसका 300-500 किलोमीटर के समुद्र तट और तट से करीबन 200 से 300 किलोमीटर अंतर्देशीय क्षेत्रों तक विस्तार किया जा सकता है।
➤प्रत्येक तटीय आर्थिक क्षेत्र राज्य के भीतर तटीय ज़िलों का क्लस्टर होगा।
➤सागरमाला कार्यक्रम के तहत तटीय आर्थिक जोन विकसित करने के लिये प्रत्येक स्थल के संबंध में 150 मिलियन डॉलर का निवेश प्रस्तावित है।
➤इससे देश में लॉजिस्टिक लागतों में प्रतिवर्ष 6 बिलियन डॉलर की बचत होगी और 10 मिलियन नए रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।
➤बंदरगाहों की क्षमता प्रतिवर्ष 800 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 3500 मिलियन मीट्रिक टन हो जाएगी।
सागरमाला राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना
यह राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना अप्रैल 2016 में शुरू की गई थी। सागरमाला सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य देश में बंदरगाहों के माध्यम से विकास की गति को तेज करना है। यह राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना केंद्र और राज्य सरकारों के प्रमुख हितधारकों और शिपिंग, बंदरगाहों, जहाज निर्माण, बिजली, सीमेंट और इस्पात क्षेत्रों की सार्वजनिक और निजी कंपनियों के साथ व्यापक परामर्श के बाद तैयार की गई है। निर्यात और आयात और घरेलू व्यापार की लागत को काफी हद तक कम करने के लिए, न्यूनतम निवेश के साथ, सागरमाला की दृष्टि को साकार करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह योजना इन चार रणनीतिक पहलुओं पर आधारित है:
- घरेलू कार्गो की लागत को कम करने के लिए मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट को ऑप्टिमाइज़ करें,
- निर्यात-आयात कार्गो लॉजिस्टिक्स के समय और लागत को कम करना,
- थोक उद्योगों को लागत के करीब स्थापित करके लागत को कम करना,
- बंदरगाहों के पास अलग-अलग विनिर्माण क्लस्टर स्थापित करना और निर्यात में सुधार करना। प्रतिस्पर्धा क्षमता बेहतर करनाक्यों ज़रूरी है तटीय क्षेत्रों का महत्त्व और उनका नियमन?
- तटीय क्षेत्रों के संरक्षण एवं सुरक्षा के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1991 में CRZ अधिसूचना जारी की थी, जिसे समय-समय पर प्राप्त ज्ञापनों और सुझावों को ध्यान में रखते हुए 2011 में संशोधित किया गया था।2011 की अधिसूचना में समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन और संरक्षण, तटीय क्षेत्रों के विकास, पारिस्थितिक पर्यटन, तटीय समुदायों के आजीविका संबंधी विकल्पों और सतत विकास आदि से संबंधित व्यापक समीक्षा के लिए व्यापक संशोधन किए जाने की आवश्यकता थी। ध्यान में रखते हुए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जून 2014 में डॉ। शैलेश नायक की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जो तटीय राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों और अन्य हितधारकों को CRZ अधिसूचना, 2011 में उपयुक्त बदलावों की सिफारिश करने के लिए थी। चिंताओं के साथ-साथ विभिन्न जिम्मेदारियों को मुद्दों को देखने के लिए लिया गया था।
- शैलेश नायक समिति का गठन और सिफारिशें
- समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिकी के प्रबंधन एवं संरक्षण, तटीय क्षेत्रों के विकास, पारिस्थितिकी पर्यटन, तटीय समुदायों की आजीविका से जुड़े विकल्प एवं सतत विकास इत्यादि से संबंधित प्रावधानों की व्यापक समीक्षा के लिये 2011 की अधिसूचना में व्यापक संशोधन करने की ज़रूरत महसूस की गई। इसे ध्यान में रखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने डॉ. शैलेश नायक की अध्यक्षता में जून 2014 में एक समिति गठित की थी जिसे CRZ अधिसूचना, 2011 में उपयुक्त बदलावों की सिफारिश करने के लिये तटीय राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों और अन्य हितधारकों की चिंताओं के साथ-साथ विभिन्न मुद्दों पर भी गौर करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी
- CRZ अधिसूचना में प्रमुख परिवर्तन〔अधिसूचना 2018)
- अधिसूचना में बदलाव से किफायती आवास के लिए अतिरिक्त अवसर बनाने में मदद मिलेगी। इससे न केवल लोगों को बल्कि आश्रय की तलाश कर रहे लोगों को भी लाभ मिलेगा। यह अधिसूचना कुछ विशेष तरीके से तैयार की गई है। इससे संबंधित कुछ आवश्यकताओं में एक उचित संतुलन है, ताकि दोनों को पूरा किया जा सके। पर्यटन को आजीविका और रोजगार के सबसे बड़े रचनाकारों में भी माना जाता है। नई अधिसूचना पर्यटन को अधिक गतिविधियों, अधिक बुनियादी ढांचे और अधिक अवसरों के संदर्भ में प्रोत्साहित करेगी। साथ ही यह निश्चित रूप से पर्यटन के विभिन्न पहलुओं में रोजगार के अवसर पैदा करने में काफी मददगार साबित होगा
CRZ अधिसूचना, 2018 की प्रमुख विशेषताएँ
फ्लोर एरिया रेश्यो: 2011 की अधिसूचना में CRZ-II (शहरी) क्षेत्रों के लिये फ्लोर एरिया रेश्यो को 1991 के विकास नियंत्रण नियमन के स्तरों के अनुसार यथावत रखा गया था। लेकिन CRZ, 2018 में इन स्तरों को यथावत न रखने और निर्माण परियोजनाओं के लिये उस फ्लोर एरिया रेश्यो को तय करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया जो नई अधिसूचना की तिथि पर मान्य या प्रचलित होगी। इससे निकट भविष्य में सामने आने वाली जरूरतों को पूरा करने के लिये इन क्षेत्रों का पुनर्विकास संभव हो पाएगा।पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढाँचे का विकास: समुद्र तटों पर अब पर्यटन से जुड़ी Hut या छोटे कमरों, शौचालय ब्लॉकों, चेंज रूम के साथ-साथ पेयजल इत्यादि जैसी अस्थायी सुविधाओं की अनुमति दी गई है।CRZ मंजूरी की प्रक्रिया सुव्यवस्थित की गई: CRZ मंज़ूरियों से जुड़ी प्रक्रिया को सरल कर दिया गया है। केवल CRZ-I (पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील माने जाने वाले क्षेत्र) एवं CRZ- IV (निम्न ज्वार रेखा और समुद्र की ओर 12 समुद्री मील के बीच अवस्थित क्षेत्र) में अवस्थित इस तरह की परियोजनाओं संबंधी गतिविधियों के लिये CRZ मंज़ूरी पाने हेतु पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संपर्क करना होगा। CRZ-II और CRZ-III के संबंध में मंज़ूरी का अधिकार आवश्यक मार्गदर्शन के साथ राज्य स्तर पर दिया गया है।सभी द्वीपों के लिये 20 मीटर का NDZ (कोई विकास जोन नहीं): मुख्य भूमि तट के निकट स्थित द्वीपों और मुख्य भूमि पर अवस्थित सभी ‘बैकवाटर द्वीपों’ के लिये 20 मीटर का कोई विकास क्षेत्र नहीं (No Development Zone-NDZ) निर्दिष्ट किया गया है। उपलब्ध स्थल के सीमित रहने के साथ-साथ इस तरह के क्षेत्रों की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर ही ऐसा किया गया है। इसका एक अन्य उद्देश्य इस तरह के क्षेत्रों के मामले में एकरूपता लाना भी है।पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील: अधिसूचना में ऐसे सभी क्षेत्रों के लिये एक हिस्से के रूप में उनके संरक्षण एवं प्रबंधन योजनाओं से संबंधित विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।प्रदूषण में कमी पर फोकस: तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये CRZ-1B क्षेत्र में शोधन संबंधी सुविधाओं को स्वीकार्य गतिविधियाँ माना गया है। हालाँकि, इस संबंध में कुछ आवश्यक सुरक्षा व्यवस्थाओं को ध्यान में रखना होगा।इनके अलावा, रक्षा एवं रणनीतिक परियोजनाओं को आवश्यक छूट दी गई है। - घनी आबादी वाले क्षेत्रों का विकास: CRZ-III (ग्रामीण) क्षेत्रों के लिये अब दो अलग-अलग श्रेणियाँ बनाई गई हैं: 1. CRZ-III A– इसमें 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति वर्ग किलोमीटर 2161 जनसंख्या घनत्व के साथ घनी आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्र हैं। 2. CRZ-III B– इसमें 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति वर्ग किलोमीटर 2161 से कम जनसंख्या घनत्व वाले ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं।
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