संयुक्त संसदीय समिति
Joint Parliamentary Committee
1993 में संसद द्वारा सरकारी कामकाज की अधिक से अधिक जांच के लिए एक संरचित समिति प्रणाली शुरू की गई थी। संसद की अधिकांश समितियों में लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सांसद शामिल होते हैं। एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) एक तदर्थ निकाय है।
जेपीसी के गठन का उद्देश्य
संसदीय निगरानी अधिक प्रभावी और कुशलतापूर्वक हो इसके लिये संसद को एक ऐसी एजेंसी की ज़रूरत होती है जिस पर संपूर्ण सदन का विश्वास हो।
अन्य बातों के साथ-साथ इस उद्देश्य की प्राप्ति संसद अपनी समितियों के माध्यम से करती है जिनमें उसके अपने कुछ सांसद होते हैं। इसके तहत संसद के समक्ष पेश किये गए किसी विशेष विधेयक या किसी सरकारी गतिविधियों में वित्तीय अनियमितताओं के मामले की जाँच करने के लिये JPC का गठन किया जाता है
जेपीसी का गठन कैसे होता है?
➤जेपीसी का गठन अनेक दलों के सदस्यों को मिलाकर किया जाता है। इस वज़ह से यह एक दलगत संरचना है जो संसद में दलों के ताकत के ज़रिये निर्धारित होती है।
इसका मतलब है कि समिति में अलग-अलग दलों से चुने हुए प्रतिनिधियों को उनके अनुपात के आधार पर चुना जाता है। यानी संसद में पार्टी के सदस्यों के अनुपात में पार्टी को प्रतिनिधित्व मिलेगा और यही वज़ह है कि किसी खास या विवादित मुद्दे पर पार्टियाँ जेपीसी की मांग करती हैं।
हालाँकि संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट कुछ प्रश्नों और विवादों से घिरी भी रहती है। फिर भी सरकार जेपीसी की सिफारिशों को महत्त्वपूर्ण मानती है और इसकी वज़ह यह है कि समिति काफी बारीकी से मुद्दे की छानबीन करती है।
कई अनियमितताओं और लापरवाही वाले कार्य केवल इसी भय से नहीं किये जाते हैं कि भविष्य में उसकी जाँच किसी संयुक्त संसदीय समिति से कराई जा सकती है।
हालाँकि विवादों को खत्म करने के इरादे से बनने वाली समिति का अंत भी आमतौर पर विवाद के साथ ही होता है लेकिन बावजूद इसके समिति का हमारे संसदीय प्रणाली में काफी प्रभावी और ख़ास महत्त्व है|
जेपीसी क्या है और इसका गठन क्यों किया जाता है?
जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति एक तदर्थ यानी अस्थायी समिति है जिसका गठन संसद द्वारा किसी विशेष मुद्दे या रिपोर्ट की जाँच के लिये किया जाता है।
दरअसल, संसद में काम की अधिकता होती है और समय सीमित होता है। इसलिये संसद सभी विधेयकों और रिपोर्टों की जाँच करने में असमर्थ होती है।
ऐसे में अलग-अलग विधेयकों, मुद्दों और संसद में पेश की गई रिपोर्टों की जाँच और उनके परीक्षण के लिये अलग-अलग समिति गठित की जाती है।
JPC भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए गठित की जाती है।
जेपीसी का गठन करने के लिये सदन में एक प्रस्ताव पारित किया जाता है और दूसरे सदन द्वारा उसका समर्थन किया जाता है|
समिति के सदस्यों की नियुक्ति को लेकर निर्णय संसद के द्वारा किया जाता है इसके सदस्यों में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल किये जाते हैं।
समिति के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं होती लेकिन फिर भी इसमें इस ढंग से सदस्यों की नियुक्ति की जाती है कि अधिकांश पार्टियों को इसमें प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले।
खासतौर पर इसमें राज्यसभा की तुलना में लोकसभा के दोगुने सदस्य होते हैं।
संयुक्त संसदीय समिति मौखिक या लिखित रूप में साक्ष्य इकट्ठा करने या मामले के संबंध में दस्तावेज़ों की मांग करने के लिये अधिकृत है।
जनहित के मामलों को छोड़कर समिति की कार्यवाही और निष्कर्ष को गोपनीय रखा जाता है। हालाँकि सरकार किसी दस्तावेज़ को उस स्थिति में वापस लेने का निर्णय ले सकती है यदि उसे लगता है कि ऐसा करना राज्य की सुरक्षा या देश के हित के लिये ज़रूरी है।
JPC को किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है और उसे यह अधिकार भी प्राप्त है कि वह किसी भी व्यक्ति, संस्था या उस पक्ष को बुला सकती है और पूछताछ कर सकती है जिसको लेकर JPC का गठन हुआ है।
अगर वह व्यक्ति, संस्था या पक्ष JPC के समक्ष पेश नहीं होता है तो यह संसद की अवमानना या उल्लंघन माना जाता है। इसके लिये JPC संबंधित व्यक्ति या संस्था से लिखित या मौखिक जवाब या दोनों मांग सकती है।
हालाँकि सबूत के लिये बुलाने पर अगर कोई विवाद होता है तो इस स्थिति में अध्यक्ष के निर्णय को अंतिम माना जाता है।
दरअसल, संयुक्त संसदीय समिति किसी खास मामले की जाँच करने और प्रतिवेदन देने के लिये दोनों सदनों के अध्यक्ष (सभापति) द्वारा समय-समय पर गठित की जाती है।
एक बार JPC के गठन के बाद इसकी भूमिका काफी बढ़ जाती है। निष्पक्ष भाव से तथ्यों की जाँच करना और मुद्दे की तह तक पहुँचना इसकी प्राथमिकता बन जाती है।
इसके लिये इसे तमाम सबूतों और मुद्दों से जुड़े व्यक्तियों की जाँच-परख करनी होती है।
एक बार सौंपे गए विषयों पर अपनी जाँच रिपोर्ट संसद में पेश कर देने के बाद जेपीसी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
|
अब तक बनी संयुक्त संसदीय समितियाँ, इनके गठन का कारण तथा संबंधित मुद्दे
अब तक संसद द्वारा विभिन्न मसलों पर जो समितियाँ बनाई गई हैं, उनके गठन का कारण तथा संबंधित मुद्दे निम्नलिखित हैं-
1. बोफोर्स तोप खरीद मामला 1987
सबसे पहले जेपीसी का गठन वर्ष 1987 में तब हुआ था जब राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप खरीद मामले में घोटाले का आरोप लगा था।
स्वीडन के रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसमें राजीव गांधी परिवार के नज़दीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची का नाम सामने आया था।
इसमें कुल 400 बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डॉलर में किया गया था।
1987 के बाद से ही देश में बोफोर्स सौदे को लेकर काफी बहस हुई और इस पर उठने वाली शंकाओं को लेकर संसद को संयुक्त संसदीय समिति बनानी पड़ी।
माना जाता है कि इसी वज़ह से साल 1989 में हुए आम चुनाव में कॉन्ग्रेस हार गई थी।
2. बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता, 1992
दूसरी बार जेपीसी का गठन वर्ष 1992 में हुआ था जब पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार पर सुरक्षा मामलों एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता का आरोप लगा था।
बाद में जब 1996 में आम चुनाव हुए तो उसमें भी इसकी वज़ह से कॉन्ग्रेस की हार हुई थी।
3. स्टॉक मार्केट घोटाला, 2001
तीसरी बार 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन किया गया था। हालाँकि इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला।
4. सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक का मामला, 2003
चौथी बार 2003 में जेपीसी का गठन भारत में बनने वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक की जाँच के लिये किया गया था।
दिल्ली की एक गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ने कोल्ड ड्रिंक्स में कीटनाशकों के अवशेष पर अध्ययन कर अपनी विश्लेषण रिपोर्ट 5 अगस्त, 2003 को सार्वजनिक की।
यह रिपोर्ट इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में सुर्खियों में रहीं। आम जनता पर इस रिपोर्ट का भारी असर हुआ। देश में जगह-जगह पेप्सी-कोक के खिलाफ प्रदर्शन हुए, उनकी बोतलें तोड़ी गईं।
रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली में खुले बाज़ार से खरीदे गए शीतल पेयों के 12 ब्रांड्स के नमूनों में कीटनाशक के अवशेष पाए गए।
5. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 2011
पाँचवीं बार 2011 में 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जाँच को लेकर जेपीसी का गठन हुआ था। 2010 में आई एक सीएजी रिपोर्ट में 2008 में बाँटे गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए थे।
उसमें बताया गया था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी की बजाय ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर इसे बाँटा गया। इससे सरकार को 1,76,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
6. वीवीआईपी चॉपर घोटाला, 2013
छठी बार 2013 में वीवीआईपी चॉपर घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन हुआ।
भारतीय वायुसेना के लिये 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिये एंग्लो इतालवी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ 2010 में किये गए 3,600 करोड़ रुपए के करार को जनवरी 2014 में भारत सरकार ने रद्द कर दिया।इस करार में 160 करोड़ रुपए कमीशन के भुगतान का आरोप लगा था।
7.सातवीं बार 2015 में भूमि अधिग्रहण पुनर्वास बिल को लेकर जेपीसी का गठन किया गया। हालाँकि इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका।
8.2016 आठवीं और आखिरी में बार NRC के मुद्दे को लेकर JPC का गठन हुआ।
2016 आठवीं और आखिरी में बार NRC के मुद्दे को लेकर JPC का गठन हुआ।नागरिकता संशोधन विधेयक, 1955 में संशोधन के लिये वर्ष 2016 में नागरिकता संशोधन से जुड़े बिल को संसद में पेश किया गया था जिसके बाद अनेक दलों की मांग पर विधेयक के पुनः परीक्षण के लिये संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया। समिति ने इस संबंध में बीते दो सालों में तमाम संगठनों से बातचीत की और अनेक राज्यों का दौरा किया और अनेक मुद्दों पर गहन चर्चा के बाद हाल ही में संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee-JPC) ने देश में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा करार देते हुए उन्हें वापस भेजने की बेहद धीमी गति पर चिंता व्यक्त की है और सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल ज़रूरी कदम उठाने को कहा है।
समिति ने इस बात पर चिंता जताई है कि देश में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं इनमें से कुछ ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरनाक है।
समिति का मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय मानवीय सहायता सहित सभी पहलुओं की तुलना में सर्वोपरि है।
समिति ने कहा है कि विदेशी नागरिकों के गैर-कानूनी तरीके से देश में आने तथा उनकी घुसपैठ पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिये। समिति का मानना है कि अवैध नागरिकों के प्रवेश को किसी भी आधार या तर्क से जायज नहीं ठहराया जा सकता।
समिति ने दोहराया कि सरकार को सीमा पर बाड़ लगाने, निगरानी और गश्त की व्यवस्था को मज़बूत बनाना चाहिये जिससे कि उन्हें पकडऩे के बाद वापस भेजा जा सके। समिति ने बॉयोमेट्रिक प्रणाली को भी दुरुस्त करने पर ज़ोर दिया है।
समिति का यह भी मानना है कि अवैध रूप से रहने वाले लोगों को उनके देश में वापस भेजने की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण मूल निवासियों और नागरिकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
समिति ने इस बारे में विशेष रूप से असम का उल्लेख करते हुए कहा है कि वहाँ राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) बनाने की प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से पूरी की जानी चाहिये और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि एक भी वैध नागरिक का नाम इसमें दर्ज़ करने से छूट न जाए।
असम और पूर्वोत्तर राज्यों में असहमति
बीजेपी सांसद राजेंद्र अग्रवाल की अध्यक्षता वाली इस समिति ने बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने की सिफारिश की है।
असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक को लेकर लोगों में नाराज़गी है। उनका कहना है कि यह विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी। भले ही उनका धर्म कोई भी हो।
इस मुद्दे पर असम में बीजेपी की सहयोगी पार्टी असम गण परिषद ने राज्य सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016
नया विधेयक नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन के लिये लाया गया है। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय 6 साल भारत में रहने पर ही नागरिकता दी जा सकती है। भले ही ऐसे लोगों के पास कोई उचित दस्तावेज़ हों या न हों।
समिति के अध्यक्ष ने माना कि कुछ राजनीतिक दलों के अपने-अपने तर्क और विरोध हैं जिनको JPC ने अपनी रिपोर्ट में शामिल किया है।
समिति ने जोधपुर, अहमदाबाद, राजकोट, गुवाहाटी, सिलचर और शिलांग आदि का दौरा करके ज़मीनी हकीकत को समझा था। साथ ही समिति द्वारा अपनी 14 बैठकों में प्राप्त 9000 ज्ञापनों पर भी रिपोर्ट तैयार करते वक्त गौर किया गया।
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था। 11 अगस्त, 2016 को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को विधेयक सौंपे जाने का प्रस्ताव किया।
राज्यसभा ने भी 12 अगस्त, 2016 को इस प्रस्ताव पर सहमति दे दी। समिति को यह रिपोर्ट शीतकालीन सत्र 2016 में ही सौंपनी थी लेकिन इसका कार्यकाल 6 बार बढ़ाया गया।
समिति ने आम लोगों के अलावा केंद्रीय गृह मंत्रालय और कई दूसरे मंत्रालयों के विचारों को भी जाना
निष्कर्षसंसद में देश हित, लोक हित, समाज हित और जनता से जुड़े मुद्दों और ज्वलंत मुद्दों पर बहस होती है, वाद-विवाद होता है और यहाँ तक की तकरार भी होती है। लेकिन जब मुद्दा इतना पेचीदा होता है कि सुलझने की बजाय उलझ जाए और लंबी बहस के बाद भी हल न निकले तो संयुक्त संसदीय समितियाँ आकार लेती हैं। राफेल डील पर विपक्ष द्वारा हाल ही में जेपीसी के गठन की मांग की गई है|
समितियाँ एक ओर जहाँ संसद और आम लोगों के बीच कड़ी का काम करती हैं तो वहीं दूसरी ओर, सरकार और आम जनता को जोड़ने का भी काम करती हैं। इन समितियों के कारण आम लोगों, संस्थानों और यहाँ तक कि व्यक्तिगत रूप से नागरिकों के लिये भी यह संभव हो पाता है कि वे लोकहित और जनता को सीधे प्रभावित करने वाले मसलों पर संसदीय विचार-विमर्श में प्रत्यक्ष और प्रभावी रूप से भाग ले सकें।
Comments