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प्राम्भिक परीक्षाओं को ध्यान में रखकर Ishrat jawed farooqui sir का यह लेख समर्पित है आप लोग इस्का अध्ययन कर लाभ ले सकते हैं -



दोस्तों आगामी upsc and uppcs की प्राम्भिक परीक्षाओं को ध्यान में रखकर निम्नलिखित लेख समर्पित है आप लोग इस्का अध्ययन कर लाभ ले सकते हैं -

सूत्र काल में आर्थिक परिवर्तन एवं नगरीकरण


लोहे का बढ़ता प्रयोग,छल्लेदार कुएं एवं धान की रोपाई की तकनीक नें इस काल में कृषि अधिशेष की परिस्थिति को जन्म दिया, कृषि अधिशेष से उपलब्ध कच्चे माल की प्रचुरता,, श्रेणियों में श्रम विभाजन यानि श्रेणी व्यवस्था के उदय के कारण शिल्प अधिशेष की परिस्थिति निर्मित हुई,मुद्रा व्यवस्था के उदय (भारत की प्राचीनतम आहत मुद्रा का विकास इसी समय में हुआ जो की तांबा एवं चांदी के बने होते थे ) बाट माप के मानकीकरण तथा लेखन प्रणाली के आविष्कार ने विकसित वाणिज्य एवं व्यापार का आधार निर्मित किया, जिसके कारण गंगा घाटी में आधारभूत संरचनाओं के विकास या नगरीकरण को जन्म दिया। इतिहास में इस घटना को द्वितीय नगरीकरण के के नाम से जाना जाता है
,#महाजनपदो का उदय *.


बढ़ते हुए कृषि अधिशेष,तथा वाणिज्य एवं व्यापार के कारण राज्य के आर्थिक संसाधनों में वृद्धि हुई। जिन राज्यों में यह अनुकूल परिस्थिति निर्मित हुई उन्होंने एक शक्तिशाली सेना बना कर कमजोर जनपदों पर आक्रमण कर उन्हें स्वयं में मिला लिया। इस प्रकार साम्राज्यवादी नीति पर चलते हुए पहले जन से जनपद और अब जनपद से महाजनपद बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ, तत्कालीन समय के साहित्यिक ग्रंथों जैसे तत्कालीन समय के बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय तथा जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में इस समय के सोलह महाजनपदों की जानकारी मिलती है। महाजनपदों में सबसे उत्तरी महाजनपद कंबोज जिसकी राजधानी राजपुर या हाटक थी तो सबसे दक्षिणी महाजनपद अश्मक जिसकी राजधानी पोथन थी।
तो वही सबसे पश्चिमी राज्य गांधार जिसकी राजधानी तक्षशिला तो सबसे पूर्वी महाजनपद अंग था जिसकी राजधानी चंपा थी
मगध साम्राज्य का उत्कर्ष

चौथी शताब्दी तक आते-आते मगध के नेतृत्व में भारत एक विशाल सम्राट का निर्माण हुआ, इस साम्राज्य के निर्माण में निम्नलिखित परिस्थितियां उत्तरदाई थीं
मगध का तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा होना एवं एक ओर गंगा नदी का विस्तार ना केवल उसे किसी भी बाहरी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता था बल्कि मगध में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता जैसे लोहे की खान एवं मगध के जंगलों से प्राप्त शक्तिशाली हाथी उसे एक अजय शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया था
एक के बाद एक करके कई सारे शक्तिशाली एवं महत्वाकांक्षी राजवंशों का उदय जिनके नेतृत्व में मगध के शासकों ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया हर्यक वंश

हर्यक वंश का संस्थापक बिंबिसार था जिसने अपनी कूटनीति एवं शक्ति के माध्यम से मगध राज्य को शक्तिशाली बनाया
तत्कालीन समय के प्रमुख शक्तिशाली कौशल राज्य प्रसनजीत की बहन महाकौशला के साथ विवाह , लिच्छवी शासक चेतक की बेटी चेलना के साथ विवाह तथा मद्र प्रदेश की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह करके इन राज्यों का सहयोग प्राप्त किया , तत्कालीन समय के अवंती राज्य से काफी गहरी दुश्मनी थी अवंति का शासक चंद प्रद्योत के साथ साम्राज्य विस्तार के मुद्दे पर दोनों राज्यों में हितों का संघर्ष था संघर्ष था, एक बार चंद प्रद्योत जब पीलिया रोग से ग्रसित हो गया तब बिंबिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को भेजकर प्रद्योत का इलाज कराया, इस प्रकार उसने अवन्ति महाजनपद को भी अपना मित्र बना लिया
इसके अलावा बिंबिसार ने अंग राज्य पर आक्रमण करके उस पर विजय कर लिया
इस प्रकार कूटनीति साम्राज्य विस्तार की निति के माध्यम से मगध को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित किया


अजातशत्रु -बिम्बिसार का पुत्र अजातशत्रु इस के बचपन का नाम कुणिक था इसने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके मगध की गद्दी प्राप्त की थी, यह प्रारंभ से हीसाम्राज्यवादी नीति का मानने वाला था, इसीलिए गद्दी पर बैठते ही इसने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई कुशल कुशल राज्य पर आक्रमण कर विजय किया तथा प्रसेनजीत की पुत्री वजीरा के साथ विवाह किया तथा काशी प्रांत को दहेज में ले लिया। इसके अलावा अजातशत्रु ने शक्तिशाली में छवियों पर आक्रमण किया स्थान पर विजय प्राप्त की
वह जैन एवं बौद्ध दोनों मतों को मानने वाला था।उसने मगध की राजधानी राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया। बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अवशेषों पर अजातशत्रु ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था
उदयिन - उदयन नें गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र नामक एक नया नगर की स्थापना करवाई तथा, तथा उसे अपनी राजधानी स्थापित की
हर्यक वंश का अंतिम शासक नागदर्शक था
शिशुनाग वंश -इस वंश का संस्थापक शैशुनाग था जिसने नाग दशक को अपदस्थ कर मगध में शिशुनाग वंश की स्थापना की। इस राज्य शासक कालाशोक हुआ जिसके समय में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया
नंद वंश- नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद था जिसने एकरात की उपाधि धारण की एकरात का अर्थ जिसका शासन चारों दिशाओं में हो। यह जैन मत को मानने वाला था इसने कलिंग राज्य की राजधानी तोसलि पर आक्रमण करके वहां से जिन की प्रतिमा उठा लाया था,तथा तोसलि में एक नहर भी खुदवाई थी।उसने मगध को एक विशाल साम्राज्य में परिणत कर दिया था, इसका साम्राज्य पश्चिम में अरब सागर एवं सिंधु नदी से लेकर पूरब में हिंद महासागर तक फैला हुआ था इस साम्राज्य का अंतिम शासक धनानंद था, वह जनता पर भारी भारी कर लगाने के लिए विख्यात था। कौटिल्य के नेतृत्व में चंद्रगुप्त मौर्य नंद वंश को समाप्त कर मगध पर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की

सूत्र काल में सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुरोहितों द्वारा सूत्र ग्रंथों की रचना की गई यह सूत्र ग्रंथ संभवत भारत के प्रथम संवैधानिक ग्रंथ थे ,जिसके समाज के विभिन्न वर्गों के लिए नियम अनुशासन को संहिता बद्ध किया गया थ। इन ग्रंथों की रचना स्वयं पुरोहितों के द्वारा की गई इसीलिए इन ग्रंथों में उन्होंने स्वयं के लिए विशेष अधिकार सुनिश्चित कर लिए,इन धर्म ग्रंथों के अनुसार धर्म सूत्रों के अनुसार चोरी को छोड़कर किसी भी अपराध में ब्राम्हण को दंड नहीं दिया जा सकता था।तो पुरोहितों जरा वही जनता परऔर अधिक नियंत्रण स्थापित करने के लिए सोलह संस्कारों की रचना की। अब एक सामान्य मनुष्य के गर्भ में आने से लेकर उसके मृत्यु तक होने वाले विभिन्न संस्कारों का निष्पादन पुरोहित के द्वारा होना था, इस प्रकार समाज में पुरोहितों की स्थिति और सशक्त हुई
उपनयन संस्कार से महिलाओं को वंचित कर दिया गया
पहचान का संकट तथा रक्त की शुद्धता को बनाए रखने के लिए जहां एक तरफ गोत्र प्रथा को विकसित किया गया तो वहीं दूसरी ओर अनुलोम एवं प्रतिलोम प्रकार के विवाह के नियम बनाए गए
उच्च वर्ण का लड़का निम्न वर्ग की लड़की के विवाह को अनुलोम विवाह कहते थे जो कि कुछ हद तक शास्त्रों में मान्य था तो वहीं,उच्च वर्ण की लड़की और निम्न वर्ग के लड़के के विवाह को के बीच होने वाले विवाह को प्रतिलोम विवाह कहा गया, और ऐसे विवाह को समाज में मान्यता नहीं दी गई। ऐसे दंपति तथा उसके उत्पन्न पुत्रों को विभिन्न अछूत जातियों की श्रेणी में रखा गया तथा उन्हें नगर से बाहर कर दिया गया।पाणिनी नें अपनी पुस्तक अष्टाध्याई में दो प्रकार के शूद्रों की व्याख्या की है ,प्रथम अनिर्वसीत शूद्र जो की नगर में रह सकते थे तो दूसरे निर्वासित सूत्र जो नगर के बाहर रहते थे।
रक्त की शुद्धता को बनाए रखने के लिए पितृसत्तात्मक समाज ने महिलाओं पर प्रतिबंध लगाने के क्रम में बाल विवाह को बढ़ावा देने तथा उन्हें उपनयन संस्कार यानी कि शिक्षा के अधिकार से भी वंचित किया जाने लगा
आर्थिक विकास के कारण पहले की तुलना में निश्चित रूप से समाज में आर्थिक असमानता बढ़ी होगी जिससे समाज में कुछ लोग दास बन गए होंगे

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