Skip to main content

विश्व पर्यावरण दिवस

पूरी दुनिया में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वह दिन है जब दुनिया में पहली बार बदलते पर्यावरण के मुद्दे पर स्टॉकहोम में चर्चा की गई थी। इस  दिन विश्व के देश जलवायु परिवर्तन तथा प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली भयानक चुनौतियों का सामना करने के लिये एक ठोस कदम उठाने को एक साथ आते हैं। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का वैश्विक मेज़बान भारत है। विश्व पर्यावरण दिवस का यह 45वाँ आयोजन है तथा इस बार इसकी थीम ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ (Beat Plastic Pollution) रखी गई है।


इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1972 में खराब पर्यावरणीय परिस्थितियों और उसके बढ़ते दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये की गई थी। वर्तमान में यह प्रदूषण की समस्या पर चर्चा करने के लिये एक वैश्विक मंच बन गया है। हर साल पर्यावरण दिवस के लिये एक खास विषय चुना जाता है और उस पर परिचर्चाएँ, गोष्ठियाँ, मेले, प्रतियोगिताएँ, आदि का आयोजन किया जाता है।

विश्व पर्यावरण दिवस के उद्देश्य
पर्यावरणीय समस्याओं को एक मानवीय चेहरा प्रदान करना।
लोगों को टिकाऊ और समतापूर्ण विकास के कर्त्ता-धर्ता बनाना और इसके लिये उनके हाथ में असली सत्ता सौंपना।
इस धारणा को बढ़ावा देना कि पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति लोक-अभिरुचियों को बदलने में समुदाय की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
विभिन्न देशों, उद्योगों, संस्थाओं और व्यक्तियों की साझेदारी को बढ़ावा देना ताकि सभी देश और समुदाय एवं सभी पीढ़ियाँ सुरक्षित एवं उत्पादनशील पर्यावरण का आनंद उठा सकें।
प्लास्टिक प्रदूषण
प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण (Plastic pollution) कहलाता है जिससे वन्य जन्तुओं, या मानवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
हमारी तेज़ दौड़ती जीवनशैली ने ‘यूज़ एंड थ्रो’ को बढ़ावा दिया है। जिसके परिणामस्वरुप पिछले कुछ वर्षों में प्लास्टिक का उपयोग बहुत अधिक बढ़ गया है और प्रदूषण में प्लास्टिक का योगदान सबसे अधिक हो गया है।
प्लास्टिक के असीमित उपयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और अधिक गंभीर हो गई है।
दुनिया भर के विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तेज़ी से प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है, उससे 2020 तक दुनिया भर में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो चुका होगा जिसे साफ़ करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे।
जब हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो हमें ऐसी वस्तुएँ दिखाई देती हैं जो या तो पूरी तरह से प्लास्टिक से बनी हैं या उनमें प्लास्टिक सामग्री का उपयोग हुआ है।
प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव
प्लास्टिक हमारे सागरों, महासागरों तथा नदियों आदि को प्रदूषित कर रहा है, जिसके कारण जलीय जीव भी प्रभावित होते हैं।
माइक्रो प्लास्टिक या बेहद छोटे आकर के प्लास्टिक के कण नलों के पानी तथा साँस लेने वाली वायु में भी पाए जाते हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़े कुछ तथ्य
प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में 500 अरब प्लास्टिक बैगों का उपयोग किया जाता है।
हर वर्ष, कम-से-कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में पहुँचता है, जो प्रति मिनट एक कूड़े से भरे ट्रक के बराबर है।
पिछले एक दशक के दौरान उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा, पिछली एक शताब्दी के दौरान उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा से अधिक थी।
हमारे द्वारा प्रयोग किये जाने वाले प्लास्टिक में से 50% प्लास्टिक का सिर्फ एक बार उपयोग होता है।
हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं।
हमारे द्वारा उत्पन्न किये गए कुल कचरे में 10% योगदान प्लास्टिक का होता है।
प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के विभिन्न देशों की पहल
प्लास्टिक की बढ़ती तादाद को देखते हुए चीन ने इस वर्ष जनवरी से प्लास्टिक के सभी प्रकार के आयात पर रोक लगा दी है।
कनाडा के हैलीफैक्स शहर में प्लास्टिक के कचरे की वज़ह से इमरजेंसी लगानी पड़ी।
कनाडा के ही एक शहर अल्बर्टा में भारी तादाद में प्लास्टिक के कचरे को एक शेड के अंदर इकट्ठा करके रख दिया गया।
फ्राँस ने वर्ष 2016 में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिये कानून पारित किया। इस कानून के अंतर्गत प्लास्टिक की प्लेटें, कप और सभी तरह के प्लास्टिक के बर्तनों को 2020 तक पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। फ्राँस पहला ऐसा देश है जिसने प्लास्टिक से बने रोजमर्रा की सभी वस्तुओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया है
रवांडा ने इस विकट स्थिति से निपटने के लिये देश में प्राकृतिक रूप से अपघटित न होने वाले सभी उत्पादों को प्रतिबंधित कर दिया था। यह अफ्रीकी देश 2008 से प्लास्टिक मुक्त है।
स्वीडन ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध तो नहीं लगाया है लेकिन यहाँ अधिकांशतः प्लास्टिक का पुनःचक्रण किया जाता है।
आयरलैंड ने 2002 में प्लास्टिक बैग पर टैक्स लागू किया जिसके अंतर्गत प्लास्टिक बैग इस्तेमाल करने पर भारी भरकम टैक्स चुकाना पड़ता था। इस टैक्स के लागू होने के कुछ दिन बाद यहाँ प्लास्टिक बैग के उपयोग में 94 प्रतिशत की कमी दर्ज़ की गई।
प्लास्टिक प्रदूषण और भारत
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार भारत में वार्षिक स्तर पर कुल 62 मिलियन टन ठोस कचरे का उत्पादन होता है जिसमें से 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा होता है।
महाराष्ट्र राज्य में शहरी स्थानीय निकायों द्वारा प्रतिदिन 23449.66 मीट्रिक टन ठोस कचरे का उत्पादन किया जाता है और इस कचरे में सामान्यतः 5-6 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा होता है। अर्थात् महाराष्ट्र राज्य में लगभग 1200 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है।
प्लास्टिक क्या है?
प्लास्टिक आमतौर पर उच्च आणविक द्रव्यमान के कार्बनिक बहुलक होते हैं और अक्सर इसमें अन्य पदार्थ भी शामिल होते हैं।
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसे अपघटित होने में कई वर्षों का समय लगता है।
ये आमतौर पर सिंथेटिक होते हैं तथा अधिकांशतः पेट्रोकेमिकल्स द्वारा बने होते हैं।
प्लास्टिक इतना खतरनाक क्यों है?
इसका प्रमुख कारण इसमें ऐसा रसायन पदार्थ है जो बायोडिग्रेडेबल नहीं है।
प्लास्टिक के निर्माण में पोलीथीलिन, पॉलिविनाइल क्लोराइड तथा पोलीस्टाइरिन जैसे पॉलीमरों का प्रयोग किया जाता है।
ये कृत्रिम पॉलीमर आसानी से कोई भी आकार ले लेते हैं तथा इनमें उच्च रासायनिक प्रतिरोध होता है।
इनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण विनिर्माणकर्त्ता बहुत से ड्‌यूरेबल और निपटान योग्य डिसपोज़ेबल वस्तुओं तथा पैकेजिंग पदार्थ में इसका उपयोग करते हैं।
प्लास्टिक के बायोडिग्रेड होने की इसी प्रतिरोधकता के कारण प्लास्टिक की एक बोतल लाखों वर्ष तक भूमि के अंदर रह सकती है।
प्लास्टिक कचरे के निपटान के तरीके
अब तक प्लास्टिक कचरे के निपटान के तीन तरीके अपनाए जाते हैं :

आमतौर पर प्लास्टिक के न सड़ने की प्रवृत्ति को देखते हुए इसे गड्ढों में भर दिया जाता है।
दूसरे उपाय के रूप में इसे जलाया जाता है, लेकिन यह तरीका बहुत प्रदूषणकारी है। उदाहरणस्वरूप, पॉलिस्टीरीन प्लास्टिक को जलाने पर क्लोरो-फ्लोरो कार्बन निकलता हैं, जो वायमुंडल की ओज़ोन परत के लिये नुकसानदायक हैं। इसी प्रकार पॉलिविनायल क्लोराइड को जलाने पर क्लोरीन, नायलान और पॉलियूरेथीन को जलाने पर नाइट्रिक ऑक्साइड जैसी विषाक्त गैसें निकलती हैं।
प्लास्टिक के निपटान का तीसरा और सर्वाधिक चर्चित तरीका प्लास्टिक का पुनःचक्रण (recycle) है।
पुनःचक्रण (recycle)
पुनःचक्रण का मतलब प्लास्टिक अपशिष्ट से पुनः प्लास्टिक प्राप्त करके प्लास्टिक की नई चीजें बनाना है।
प्लास्टिक पुनःचक्रण की शुरुआत सर्वप्रथम सन् 1970 में कैलीफोर्निया के एक फर्म ने की थी।
पर्यावरण के संदर्भ में भारत की वर्तमान स्थिति
पर्यावरणीय स्वास्थ्य श्रेणी में भारत का स्थान (180 देशों की सूची में 178 वाँ स्थान) यह स्पष्ट करता है कि भारत की स्थित न केवल पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से खराब है बल्कि वायु की गुणवत्ता बढ़ाने में भी वह असफल रहा है।
पिछले तीन सालों में विकास के नाम पर 36,500 हेक्टेयर वन भूमि स्थानांतरित की गई है।
पर्यावरण संबंधी संवैधानिक आयाम
मूल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 297(1),(2) और (3) में समुद्रवर्ती संसाधनों के प्रबंधन तथा विनियमन के लिये संसद को विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त है।
संविधान का 42वाँ संशोधन पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 48(A) तथा 51(A) को जोड़ा गया और पर्यावरण के संवर्द्धन तथा वन एवं वन्य जीवन की सुरक्षा के लिये राज्य और नागरिकों को उत्तरदायी बनाया गया है।
वर्तमान समय में देश में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये सिर्फ एक कानून है कि- कोई उत्पादक या दुकानदार 50 माइक्रान से कम मोटी प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं कर सकता है। यह कानून अन्य सभी प्रकार के प्लास्टिक बैग पर लागू नहीं होता इसलिये प्लास्टिक का उपयोग कम नहीं होता।
पर्यावरण सुरक्षा संबंधी मानकों की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्याख्या
एमसी मेहता बनाम कमल नाथ (1997) एससीसी 388 मामले में न्यायालय ने अनुच्छेद 21 में अंतर्निहित जन न्यास एवं पारिस्थितिकी सिद्धांत की व्याख्या की है, जिसके अनुसार राज्य का यह वैधानिक दायित्व है कि वह एक न्यासी के रूप में संसाधनों का संरक्षण करे, न कि उनके स्वामी के रूप में।
बॉम्बे डाइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड बनाम बॉम्बे एनवायर्नमेंटल एक्शन ग्रुप (2006) 3एससीसी 434 मामले में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि पर्यावरण की सुरक्षा और परिरक्षण की संवैधानिक योजना संवैधानिक नीति पर आधारित है और राज्य पर इसे क्रियान्वित करने की बाध्यता है।
इस निर्णय के आधार पर यह निर्विवाद है कि राज्य द्वारा धारणीय विकास की नीति को लागू करने के दौरान विकास की आवश्यकता और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिये।
न्यायालय ने बहुचर्चित गंगा प्रदूषण वाद एमसी मेहता बनाम भारत संघ (1987) 4एससीसी 463 में यह स्पष्ट कहा है कि लोगों के लिये उनका जीवन, स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत को प्लास्टिक का उपयोग कम करने के लिये सामूहिक प्रयास की आवश्यकता
देश में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिये भारत सक्रिय प्रयास कर रहा है। उदहारण के लिये भारत के 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लागू किया गया है। हालाँकि इस प्रतिबंध की प्रभावशीलता संदिग्ध है, अतः इस समस्या के समाधान के लिये सभी भारतीयों को प्रयास करना होगा :

खरीददारी करते समय कपड़े के थैले लेकर जाएँ
प्लास्टिक की थैलियों का पुनः प्रयोग करें
पुनः प्रयोग की जा सकने वाली कटलरी में निवेश करें
पहले से ही पैक किये गए खाद्य पदार्थों की खरीदारी कम करे
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत इस वर्ष 8 अप्रैल से कचरे का पृथक्करण अपेक्षित है, उसे प्रभावी रूप से लागू करने से प्लास्टिक और अन्य सामग्री को पुनः प्राप्त किया जा सकेगा जिससे पर्यावरण पर बोझ को कम किया जा सकता है।
पर्यावरण संरक्षण के लिये पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता
स्टॉकहोम सम्मेलन के आधार पर वर्ष 1977 में यूनाइटेड नेशंस एजुकेशन, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाईज़शन (UNESCO) द्वारा यूनाइटेड नेशंस एन्वायरनमेंट प्रोग्राम (UNEP) के सहयोग से त्बिलिसी, जॉर्जिया में विश्व के पहले ‘पर्यावरणीय शिक्षा पर अंतःसरकारी सम्मेलन’ का आयोजन किया गया था।

सम्मेलन के उद्देश्य
मानवीय गतिविधियों तथा विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं में मानव के हस्तक्षेप के कारण पर्यावरण की बिगड़ती हुई स्थिति तथा उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में लोगो को जागरूक करना।
पर्यावरण से संबंधित सामान्य जानकारियाँ तथा मानव एवं पर्यावरण के बीच संबंधों के बारे में जानकारी प्रदान करना।
पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाले सामाजिक मूल्यों तथा मनोभावों को अंतर्विष्ट करना
पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये कौशल विकसित करना।
पर्यावरण का आकलन करना तथा शिक्षा कार्यक्रमों का विकास करना।
पर्यावरण के प्रति लोगों में ज़िम्मेदारी की भावना उत्पन्न करना।
सम्मेलन के दिशा-निर्देश
पर्यावरण तथा इसकी संपूर्णता पर विचार करना।
यह एक सतत् प्रक्रिया होनी चाहिये जिसकी शुरुआत प्राथमिक स्तर के विद्यालयों से ही प्रारंभ होनी चाहिये।
इसका दृष्टिकोण बहु-विषयक हो।
स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पर्यावरण संबंधी प्रमुख मुद्दों की पहचान करना।
वर्तमान तथा संभावित पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना।
पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिये स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भूमिका तथा आवश्यकता को बढ़ावा देना।
वर्ल्ड बैंक के दिशा-निर्देश
पर्यावरणीय शिक्षा के संबंध में वर्ल्ड बैंक ने भी कुछ दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिसके अनुसार पर्यावरणीय शिक्षा को निम्नलिखित बातों पर केंद्रित होना चाहिये:
पर्यावरण से संबंधित मूलभूत तथा वैज्ञानिक ज्ञान।
सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर ऐसे ज्ञान को व्यवहार में लाना।
पर्यावरण से संबंधित समस्याओं का हल निकालने के लिये विशेष पर्यावरणीय ज्ञान प्रदान करना।
वास्तविक जीवन से संबंधित व्यावहारिक समस्याओं को हल करने में सर्वांगीण दृष्टिकोण अपनाना।
कुल मिलाकार तात्पर्य यह है कि पर्यावरणीय शिक्षा में सभी  छात्रों के अंदर पर्यावरण साक्षरता पैदा करने के लिए पर्याप्त ताकत होनी चाहिये केवल तभी हम पर्यावरण संबंधी मुद्दों को हल करने के लिये अपना ज्ञान का व्यहारिक रूप से प्रयोग कर सकेंगे।

निष्कर्ष
मुख्य रूप से विश्व पर्यावरण दिवस हम सभी के लिये एक ऐसा दिन है जब हम अपने पर्यावरण का ज़िम्मा अपने हाथों में ले सकें और हमारी पृथ्वी की रक्षा करने के लिये सक्रियता से भागीदारी कर सकें। विश्व पर्यावरण दिवस 2018 का विषय, “प्लास्टिक प्रदूषण को हराएँ” (Beat Plastic Pollution), सरकारों से, उद्योग जगत से, समुदायों और सभी लोगों से आग्रह करता है कि वे साथ मिलकर स्थाई विकल्प खोजें और एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को जल्द-से-जल्द रोकें क्योंकि यह हमारे महासागरों को प्रदूषित कर रहा है, समुद्री जीवन को नष्ट कर रहा है और मानव स्वास्थ्य के लिये खतरा बन गया है।
माय प्रोग्रेस में भेजें 

Comments

Popular posts from this blog

करेंट अफेयर्स : टेस्ट

1 .इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: यह संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद दूसरी सबसे बड़ी अंतर-सरकारी संस्था है। भारत OIC के पर्यवेक्षक देशों में से एक है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? A केवल 1 B केवल 2 C 1 और 2 दोनों D न तो 1 और न ही 2   click here for answer 2 . प्रधानमंत्री जी-वन योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: इसे देश में 2G इथेनॉल क्षमता निर्मित करने हेतु एक उपकरण के रूप में लॉन्च किया जा रहा है। सेंटर फॉर हाई टेक्नोलॉजी (CHT) इस योजना के लिये कार्यान्वयन एजेंसी होगी। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? A केवल 1 B केवल 2 C 1 और 2 दोनों D न तो 1 और न ही 2     click here for answer 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: सरकार ने 2022 तक पेट्रोल में 10% इथेनॉल सम्मिश्रण किये जाने का लक्ष्य रखा है। तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन शैवाल से प्राप्त होते हैं। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? A केवल 1 B केवल 2 C 1 और 2 द

Delhi declaration

G20 Summit: The announcement is significant as the deliberations on the Delhi declaration were clouded by the different positions on Russia-Ukraine war Prime Minister Narendra Modi at the Session-2 on 'One Family' during the G20 Summit 2023 at the Bharat Mandapam Prime Minister Narendra Modi at the Session-2 on 'One Family' during the G20 Summit 2023 at the Bharat Mandapam G20 Summit: PM Modi announced on Saturday that the leaders of G20 countries have reached a consensus on New Delhi G20 Leaders Declaration. The announcement is significant as the deliberations on the Delhi declaration were clouded by the different positions on Russia-Ukraine war. Here's the full text of the New Delhi G20 Leaders Declaration: Preamble 1. We are One Earth, One Family, and we share One Future. 2. We, the Leaders of the G20, met in New Delhi on 9-10 September 2023, under the theme ‘Vasudhaiva Kutumbakam’. We meet at a defining moment in history where the decisions we make now will dete

पाकिस्तान से छिना मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज का द्रजा। जानिए आखिर है क्या

क्या है सबसे ज्यादा फेवरेट नेशन क्लॉज मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)   का दर्जा कब दिया गया? मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)  क्या है? दरअसल एमएफएन (एमएफएन)  का मतलब है मोस्ट फेवर्ड नेशन, यानी सर्वाधिक तरजीही देश. विश्‍व व्‍यापार संगठन और इंटरनेशनल ट्रेड नियमों के आधार पर व्यापार में सर्वाधिक तरजीह वाला देश (एमएफएन) का दर्जा दिया जाता है. एमएफएन का दर्जा मिल जाने पर दर्जा प्राप्त देश को इस बात का आश्वासन रहता है कि उसे कारोबार में नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. भारत 01 जनवरी 1995 को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सदस्य बना था. डब्ल्यूटीओ बनने के साल भर बाद भारत ने पाकिस्तान को वर्ष 1996 में मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)  का दर्जा दिया था लेकिन पाकिस्तान की ओर से भारत को ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया गया था . मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन)   का दर्जा लेने की प्रक्रिया: बता दें कि विश्व व्यापार संगठन के आर्टिकल 21बी के तहत कोई भी देश उस सूरत में किसी देश से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले सकता है जब दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर विवाद उठ गया हो. हालांकि इसके लिए तमाम शर्तें पूर