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जीव विज्ञान और पर्यावरण

केरल में मकड़ी की नई प्रजाति पाई गई

संदर्भ

हाल ही में कोच्चि के सेक्रेड हार्ट कॉलेज के जंतु वैज्ञानिकों द्वारा एर्नाकुलम के इलिथोडु जंगलों में पहली बार कूदने वाली मकड़ियों के एक समूह को देखा गया है।
प्रमुख बिंदु
  • मकड़ी की यह प्रजाति मुख्यतः यूरेशिया और अफ्रीका में पाई जाती है और ‘हैब्रोसेस्टेम जीनस’ (Habrocestum) से जुड़ी एक नई प्रजाति है।
  • टीम को अलग-अलग दिखने वाली कई मकड़ियाँ मिली जिनमें से छह सफेद और क्रीमी-पीले पैच के साथ लाल-भूरे रंग एवं काले रंग की थी।
  • अध्ययन में यूरोपीय हैब्रोस्टेम मकड़ियों के साथ तुलना करने पर पता चला है कि इलिथोडु में पाई गई मकड़ियाँ पूरी तरह से एक नई प्रजाति है क्योंकि उनके पास अलग-अलग प्रजनन अंग हैं।
  • मकड़ियों के पहले दोनों पैरों के नीचे एक लंबी रीढ़ होती है और इसलिये इसका वैज्ञानिक नाम ‘हैब्रोसेस्टेम लॉन्गिस्पिनम’ (Habrocestum longispinum ) रखा गया है।
Habrocestum longispinum
  • वैज्ञानिकों ने कहा है कि अनियमित पर्यटन गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन से इन छोटे जीवों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है।
  • अध्ययन में पाया गया कि ये मकड़ियाँ यूरेशिया अफ्रीका के अलावा भारत में भी पाई जाती है।
  • इस खोज से महाद्वीपीय बहाव सिद्धांत को भी समर्थन मिलता है, जो बताता है कि दुनिया के महाद्वीप एक बड़े सन्निहित भूभाग थे जहाँ ये जीव कई लाखों साल पहले पनपे थे।

स्रोत: द हिंदू


विविध

90 प्रजातियों को मारने वाले घातक कवक के संबंध में चेतावनी

चर्चा में क्यों?

चिली में आयोजित वर्ल्ड आर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ एक्वेटिक कॉन्फ्रेंस (World Organization for Animal Health Aquatic Conference) में एक अमेरिकी जीव विज्ञानी ने चेतावनी दी है कि उभयचरों को प्रभावित करने वाली एक घातक बीमारी वैश्विक महामारी के रूप में सामने आई है जो पहले ही 90 प्रजातियों का सफाया कर चुकी है।

प्रमुख बिंदु

  • Chytridiomycosis नामक यह रोग Batrachochytrium dendrobatidis नामक एक कवक के कारण होता है जो मेंढकों, उभयचर मेढ़कों (Toads) तथा अन्य उभयचरों की त्वचा पर हमला करता है।
  • ये जीव साँस लेने के लिये त्वचा का उपयोग करते हैं तथा अपने शरीर के जल स्तर को नियंत्रित करते हैं, इस रोग की वज़ह से होने वाली क्षति अंतत: हृदयाघात और मृत्यु का कारण बनती है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा वर्णित यह पहला वैश्विक जंगली रोग’ (The first global wild disease) अभी तक 60 से अधिक देशों में फ़ैल चुका है और एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है।
  • इस अत्यधिक संक्रामक बीमारी के कारण पिछले पाँच वर्षों में पहले ही लगभग 90 प्रजातियाँ गायब हो चुकी हैं और 500 से अधिक प्रजातियाँ प्रभावित हैं।
  • कवक का तेज़ी से वैश्विक प्रसार का कारण पशु व्यापार नियमों और हवाई अड्डे की निगरानी में कमी के साथ-साथ बिना परीक्षण के वन्यजीवों का आयात करने की अनुमति देना है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, इस समस्या को हल करने के लिये विनियमन (Regulation) पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। हालाँकि वैश्वीकरण लोगों के लिये एक बेहतर स्थिति है लेकिन इसका जानवरों पर बुरा प्रभाव भी दिखाई देता है।
  • वर्तमान में यह बीमारी एशिया के साथ व्यापार करने वाले लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में व्यापक रूप से फैल रही है जहाँ इस कवक (fungus) की उत्पत्ति तथा प्रसार हुआ।
  • वैज्ञानिकों का यह भी मानना ​​है कि फंगस के आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic Mutation) ने इसे और खतरनाक बना दिया होगा।
  • जलीय पर्यावरणीय गुणवत्ता को बनाए रखने में 

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